For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तेरे संग जीवन बीता था

बहुत दिनों तक !

कब सोचा था

तेरा जाना ऐसा होगा !

 

बिना प्रतीक्षा किए तुम्हारी

अब तो जल्दी सो जाता हूँ !

बुझा दिया करती थी जो तुम ,

दिया रात भर जलता है अब !

बतियाता है भोर भोर तक ,

कीटी-पतंगों से हँस-हँस कर !

खुश रहता हैं !

और पुराने चादर पर अब

नहीं उभरती ,

रोज–रोज की नई सिलवटें !

 

मैं भी सारी फिक्र भुला कर

सूरज चढ़ने तक सोता हूँ !

नही जगाती

अब कोई चूड़ी की खन-खन !

कानों को आराम मिला

बर्तन धोने की आवाजों से !

और ऊँघते होंठ ,

चाय की प्याली याद नही करते हैं ,

पहली चुस्की में अक्सर जल ही जाते थे !

 

साथ तुम्हारे मैं चलता था ,

घायल पैरों की छागल बन !

चलती थी तुम

धीरे–धीरे ,

संभल-संभल कर ,

रहता था संगीत अधूरा !

फिर तेरे कोमल हाथों ने

मेरी किस्मत के माथे पर

यादों का संदूक लिख दिया !

अब जीवन में सूनापन है !

 

तेरे बीन जीवन सूना था

बहुत दिनों तक !

फिर भी याद नही आती अब !

कब सोचा था

तेरा जाना ऐसा होगा !

 

 

 

.................................. अरुन श्री !

Views: 596

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Arun Sri on May 21, 2012 at 8:35pm

आदरणीय सौरभ सर , आपकी प्रातक्रिया आत्ममुग्धता का कारण बनी ! धन्यवाद ! यहाँ आपकी अनुपस्थिति खल रही थी ! आपका मार्गदर्शन चाहिए होता है रचना को सशक्त और समृद्ध बनाने के लिए ! अब संतुष्टि हुई कि इस पर कविता पर दुबारा काम नही करना पड़ेगा !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 19, 2012 at 12:20pm

अच्छा किया जो चेताया आपने, भाई अरुणजी.

असंपृक्त जीवन के विन्यास से अचानक कुछ विशेष के खुरच कर विलग हो जाने के कचोटपन को निहायत संजीदग़ी से उकेरा है आपने. ’जो होना था हो चुका पर.. . ’ को इतनी महीनी से शब्दबद्ध होता कम ही देख पाते हैं हम आजकल की प्रस्तुतियों में.

रचना की कुछ पंक्तियों में सन्निहित भाव तो इतने सान्द्र हैं कि उनका महसूसना दीखता है. दृग-कोरों को सायास ऊष्माने के फेर में आर्द्रता कुछ और घनीभूत हो जाती है. लाल डोरों की जालियाँ चाह कर भी बहुत कुछ उलझाये नहीं रख पाती और क्या तो क्या निसर आता है.

बिना प्रतीक्षा किए तुम्हारी
अब तो जल्दी सो जाता हूँ !
बुझा दिया करती थी जो तुम ,
दिया रात भर जलता है अब !
बतियाता है भोर भोर तक ,
कीटी-पतंगों से हँस-हँस कर !
खुश रहता हैं !

अद्भुत !! .. भाई, हृदय से मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें और इसी तरह रचनारत रहें.


Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 10:17am

रेखा जोशी मैम , दिल को समझाना तो होता ही है और विरह की यही स्वीकार्यता जिंदगी को आगे बढाती है ! और मन कह उठता है "जो बीत गई सो बात गई" ! सराहना हेतु धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 10:15am

सुरेन्द्र कुमार भ्रमर सर , सच कहा //विरही मन अपने को ऐसे ही शांत कर लेता है// ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 10:12am

संदीप जी , सराहना के लिए धन्यवाद ! साथ बने रहिएगा मित्र !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 10:11am

प्राची सिंह मैम , आप जैसे रचना कार द्वारा इस रचना का अनुमोदन निश्चय ही एक सुखद अनुभूति देता है ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 10:02am

बागी सर , यदि आप प्रभावित हुए तो रचना निश्चित ही अच्छी है ! बहुत बहुत धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 10:01am

आशीष यादव जी , आपकी प्रतिक्रिया (विशेषकर शिल्पगत प्रतिक्रिया) ने कविता को खास बना दिया ! धन्यवाद !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 9:58am

प्रदीप कुशवाहा सर , कविता को पसंद करने और इतनी सुन्दर पंक्तियों से उसे अलंकृत करने के लिए आभारी हूँ !

Comment by Arun Sri on May 16, 2012 at 9:56am

महिमा श्री जी ,  खुद  को समझाने का कोई तरीका तो ढूँढना ही था ! आपने पसंद किया उसके लिए  धन्यवाद !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service