For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वो खुद में इतना सिमटे-सिमटे थे
जैसे वो दिल को पकड़े-पकड़े थे |

उनको देख हुए थे बेसुध हम तो
क्या बात करें अब मुखड़े, मुखड़े थे |

ना तीर चला , ना ही तलवार चली
देखा तो दिल के टुकड़े-टुकड़े थे |

जाने किसका जादू चढ़ बैठा था
बेसुध थे सब,  सब उखड़े-उखड़े थे |

दिल ने आखिर दिल लूट लिया होगा 
उनके गेसू भी उलझे-उलझे थे |

-------- दिलबाग विर्क 

Views: 643

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 18, 2012 at 2:45pm

ना तीर चला , ना ही तलवार चली

देखा तो दिल के टुकड़े-टुकड़े थे |

bahut khoob. badhai. 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 18, 2012 at 12:11pm

आदरणीय दिलबाग जी,

बहुत ही सुन्दर प्रयास| ख़ूबसूरत भाव| कहीं कुछ कमी सी रह गयी ऐसा लगता है| साभार,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 17, 2012 at 11:10pm

आपने मान दिया विंध्येश्वरीजी.

इसी पेज के धुर नीचे (एकदम आखीर में) चार लिंक हैं, उन्हें समझ कर देखें और साथ ही इसी मंच पर आदरणीय तिलकराज जी की कक्षा में दाखिला लेलें.

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 10:57pm
ठीक है गुरूदेव! आपका आदेश सिर-आंखों पर है।मेरे लिए गुरू का महत्तव एक तरफ और सारी दुनिया एक तरफ।हालांकि आपका इशारा समझ तो नहीं पाया हूं पर समझने का प्रयास करूंगा(शायद ये व्यंग्य टिप्पणी के ऊपर हो)।लेकिन बात यहीं खत्म मत कीजिएगा,यह बताने की कृपा अवश्य कीजिएगा कि गजल की तकनीकि को सरल से सरलतम रूप में कैसे समझा जाए।
सादर।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 17, 2012 at 10:44pm

विन्ध्येश्वरी जी, होली बीत गयी.

आप ग़ज़ल को इतना हल्का न लें. वैसे इसमें इतना कठिन कुछ भी नहीं है, मग़र विधा थोड़ी अलग है सो यहाँ अनायास कुछ भी नहीं होता. समय ही नहीं खुद को भी खपाना होता है. इशारा काफ़ी होना चाहिये, है न ?

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 10:38pm

बागी जी आपने तो मेरा पत्ता ही साफ कर दिया,मतलब अब मैं समीक्षा न करूँ।पर मुझे तो समीक्षा करनी ही है एनी हाउ,कैसे भी।बस गजल की बारीकियों को सीखने के लिए आप मुझे कोई और तरीका बताने का कष्ट करें,हां।
रही बात 'हिन्दुस्तानी सरल तरीका ..........वाले कमेंट की तो वहां मुझसे भूल हुई और सुधार ये है कि मुझे कहना चाहिए था कि हिन्दुस्तानी जुगाड़ से काम चलाने पर ज्याद फोकस करता है और मैं भी हिन्दुस्तानी हूं।(सर ये व्यंग्य टिप्पणी थी इस पर बुरा मानने जैसा कुछ नहीं है।)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 17, 2012 at 9:50pm

दिलबाग़जी, आपकी प्रस्तुति ग़ज़ल की विधा में रह गयी बँधते-बँधते.

मेरी तो अबसे सभी ग़ज़लकारों और शायरों से गुज़ारिश होगी कि जिस बह्र में ग़ज़ल कह रहे हैं उसके वज़्न को भी ग़ज़ल के ऊपर लिख दिया करें. इससे सभी को लाभ होगा. सीखने वालों को भी और सिखाने वालों को भी.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 17, 2012 at 9:35pm

भाई विधेश्वरी जी , जिस विधा की समझ ना हो उसकी समीक्षा तो ना कीजिये, जब आपको ग़ज़ल विधा की मूलभूत बातें मालूम नहीं है तो उट पटांग टिप्पणी न दें, एक बात और ...हिन्दुस्तानियों को आज तक कोई चीज आसानी से नहीं मिली है , हम मेहनत से ही हासिल करते है,

सादर !

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 17, 2012 at 9:30pm
बागी जी दो बार पढ़ चुका हूं बाटम को पर वो बात अपने पल्ले नहीं पड़ी,कारण कि उसमें प्रयुक्त उर्दू के शब्द मेरे लिए कड़े हैं जो मेरे दिमाग के दांत से फूटते नहीं।कोई सस्ता सरल सा तरीका बताने की कृपा कीजिए।सस्ता इसलिये कि सच्चा हिन्दुस्तानी हूं हर चीज आसानी से चाहता हूं।

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 17, 2012 at 9:16pm

विन्देश्वरी जी, सबसे पहले तो आप ग़ज़ल शिल्प के सम्बन्ध में ज्ञान ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर बाटम में दिए गए लिंकों पर जाकर एकत्र कर ले, उसके बाद आप जान जायेंगे की तुकांत को उर्दूं में काफिया कहते है या बहर | 

जहाँ तक विर्क साहब की ग़ज़ल में प्रयुक्त तुकांत (काफिया) है वो सही है |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल  के शेर पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया देख मन को सुकून मिला , आपको मेरे कुछ…"
18 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service