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निजत्व की खातिर

निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं
अचुत्य होकर इन सबसे
क्या कर सकेगा
कोई अनुसन्धान
कई सपने हैं
कई इच्छाये हैं
पूरी होने की आशाये हैं
पर विषयों के उद्दाम वेग से
कब तक बच सकेगा इन्सान
भीड़-भाड़ है
भेड़-चाल है
दाव-पेंच के
झोल -झाल है
इनसे बच कर अकेला
कब तक चलेगा इन्सान
कौन है ईश्वर
जीवन क्या है
मै कौन हूँ
क्यूँ आया हूँ
जिज्ञासायों के कई भंवर हैं
डूब के इनमे
अपनों से कब तक
मुख मोड़ सकेगा इन्सान

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Comment by MAHIMA SHREE on April 5, 2012 at 10:58am
आदरणीया मीनू दी.
आपका हार्दिक धन्यवाद...
Comment by minu jha on April 3, 2012 at 1:33pm

महिमा जी,सुंदर और यथार्थपरक रचना की बधाई स्वीकारें

Comment by MAHIMA SHREE on March 29, 2012 at 3:50pm
आदरणीय अशोक सर ,
नमस्कार, आपका हार्दिक धन्यवाद .....
Comment by Ashok Kumar Raktale on March 29, 2012 at 12:12am

निजत्व की खातिर
कर्तव्यो की बलिवेदी से
कब तक भागेगा इन्सान
ऋण कई हैं
कर्म कई हैं
इस मानव -जीवन के
धर्म कई हैं

जीवन  की कसौटी पर इंसान को परखती सुन्दर रचना. बधाई महीमा जी.

Comment by MAHIMA SHREE on March 28, 2012 at 11:20am
आदरणीय रविन्द्र सर
सादर नमस्कार..... आपका हार्दिक धन्यवाद् ...रचना को सराहने और मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए.....आपको भी मेरी और से
फ़ीचर होने की बहुत -२ बधाइयां ...साभार ..
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 24, 2012 at 10:46am

फीचर्ड ब्लॉग हेतु बधाई 

Comment by MAHIMA SHREE on March 23, 2012 at 12:15pm
OBO के गुणीजनों को विशेषकर आदरणीय प्रधान संपादक जी को मेरा सादर आभार इस रचना को featured blogs में
शामिल करने के लिए...
Comment by MAHIMA SHREE on March 19, 2012 at 10:13am
नमस्कार प्रवीन जी
आपका बहुत-२ धन्यवाद्
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार......
Comment by MAHIMA SHREE on March 17, 2012 at 3:43pm
आदरणीय नीरज जी,
सादर नमस्कार,
आपका हार्दिक आभार....
Comment by MAHIMA SHREE on March 16, 2012 at 2:28pm
श्रधेय प्रदीप सर
सादर चरण स्पर्श ,
आपके उत्साहवर्धन और आशीर्वाद का हमेशा इंतजार होता है.... सादर आभार..

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