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यही है ख़ुदाई उसकी, छोटी सी ये इल्तजा,
जो कभी की थी उससे, पूरी वो न कर सका;

तेरे मेरे बीच हैं अब, मीलों के फ़ासले
कभी सामने थे तुम, आज हो गए परे

तेरे मेरे बीच हैं…

एक वो भी लम्हा था, तुम थे मेरे रूबरू,
दीद भी हुआ नायाब, ढूँढता हूँ चार सू;
फिर भी एक यक़ीं सा है, ज़िंदगी अजीब है
दूर हो के भी तू मुझसे, और भी क़रीब है

तेरे मेरे बीच हैं…

अब नहीं है कोई हसरत, और कुछ न है चाहत,
सफ़रे आख़िरत से भी, मिलेगी नहीं राहत;
चंद क़दमों की है दूरी, और है वही मजबूरी

इस जनम मुकम्मल न हो, अगले जनम होगी पूरी
तेरे मेरे बीच हैं..
.


http://www.youtube.com/watch?v=S77jz2KTgQo

(उपर्युक्त यू ट्यूब लिंक पर क्लिक कर के मेरी आवाज़ में इस गीत को अवश्य सुनें)

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Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:13pm

आनंद जी आपका आभारी हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:13pm

आपका हार्दिक आभार मीनू जी|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:12pm

वैचारिक समर्थन के लिए शुक्रिया आशुतोष जी |

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2012 at 9:12pm

सुन्दर भाव मधुर अभिव्यक्ति वाहिद जी हार्दिक बधाई इस रचना हेतु !!

Comment by minu jha on March 2, 2012 at 8:29pm

bahut sundar wahid bhai,aur obo ka pata batene

ke liye aapka hardik aabhar.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 7:21pm

धन्यवाद राकेश जी| सफ़रे आखिरत का अर्थ है मौत का सफ़र..

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 7:20pm

हार्दिक आभार आदरणीय कुशवाहा जी

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 2, 2012 at 7:19pm

शुक्रिया आनंद भाई..

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 2, 2012 at 4:03pm

दूरियों का दर्द बयान करती कविता. आख़िरत का अर्थ?

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 2, 2012 at 3:40pm

अब नहीं है कोई हसरत, और कुछ न है चाहत,
सफ़रे आख़िरत से भी, मिलेगी नहीं राहत;
चंद क़दमों की है दूरी, और है वही मजबूरी

इस जनम मुकम्मल न हो, अगले जनम होगी पूरी

bahut sundar. badhai


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