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घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई में
मिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।
*
दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर
क्या डर लगता है तम को तन्हाई में।२।
*
छत पर बैठा मुँह फेरे वह खेतों से
क्या सूझा है मौसम को तन्हाई में।३।
*
झील किनारे बैठा चन्दा बतियाने
देख अकेला शबनम को तन्हाई में।४।
*
घाव भले भर पीर न कोई मरने दे
जा तू समझा मरहम को तन्हाई में।५।
*
साया भी जब छोड़ गया हो तब यारो
क्या मिलना था बेदम को तन्हाई में।६।
*
बीता वक्त उठाता सर जब यादों से
मन लिख देता है ग़म को तन्हाई में।७।
*
यादों का ध्वज भले समेटे मन बैठा
लहरा  देगा  परचम  को तन्हाई में।८।
*
पथ ही देंगे राहत थोड़ी साँझ ढले
चलते-चलते  बेदम  को तन्हाई में।९।
*
बरसों बाद  मिला  है  भरले बाँहों में
दौड़ 'मुसाफिर' हमदम को तन्हाई में।।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by Chetan Prakash on July 6, 2025 at 11:47pm

खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  ( 9 ) में  प्रयुक्त हुआ,  मेरी राय  में, शे'र (6 ) में, हमदम और, (9 ) में, बरहम, बेहतर होता !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 5, 2025 at 7:52am

बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर 


बधाई सृजन पर 

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