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मन में केवल रामायण हो (,गीत)- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

कितना भी दुविधा का क्षण हो
मन   में   केवल   रामायण  हो।।
*
बनना जितना राम असम्भव
उससे बढ़कर भरत कठिन है।
जीवन  में  चहुँ   ओर  मंथरा
जब उकसाती हर पलछिन है।।


कलयुग के सिर दोष न मढ़ना
देख स्वयम् को निज दर्पण हो।।
*
इच्छाओं     के     कुरुक्षेत्र में
भीष्म सरीखा जब हो घायल।
और ज्ञान के नभ मण्डल में
शंकाओं   के   छायें  बादल।।


पर तुम विचलित कभी न होना
आस-पास  कितना  भी रण हो।।
*
गोवर्धन  नित  पड़े  उठाना,
या फिर करना सागर मंथन।
मत अर्जुन सी दुविधा रखना,
आयेगा अब  और  न मोहन।।


बनो समय पर खुद निर्णायक
तुम भी तो शिव के ही गण हो।।
*
राजनीति की माया ठगिनी,
बना रही जब सबको कंसज।
अपमानित कर परम्परा को,
मत बनना रावण का वंशज।।


कर देगा सब नष्ट क्षणों में,
भले पाप का छोटा कण हो।।
*
संघर्षों  की   समरभूमि  में,
मन शकुनी सा मत होने दो।
सीता, राम लखन को वन में,
इस युग में तो मत खोने दो।।


सबरी जैसा भाव सदा रख,
निर्निमेष फिर से अर्पण हो।।
*
गांधारी सा आँख मूँदकर
पाल रहे सन्तानें जितने
जान सकेंगे वो सब कैसे
भटक गये हैं जग में कितने।।


कुंती जैसा  पाप छुपाकर
जग कहता कैसे तर्पण हो।।
*
"समय करेगा निर्णय सबका"
भले दिलासा  देता  मन को।।
आएँ पर अवतार कहाँ तक,
मुक्त कराने शापित जन को।।


समझो झटपट बात अहिल्या
स्वयं मुक्ति का अब तो प्रण हो।।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 13, 2024 at 5:53am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 13, 2024 at 5:52am

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

Comment by Sushil Sarna on December 9, 2024 at 1:46pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बेहतरीन 👌 प्रस्तुति और सार्थक प्रस्तुति हुई है ।हार्दिक बधाई सर 

Comment by Dayaram Methani on December 8, 2024 at 9:35pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, अति सुंदर गीत रचा अपने। बधाई स्वीकार करें।

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