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दोहा पंचक. . . . तूफान

दोहा पंचक. . . . . तूफान

चार कदम पर जिंदगी, बैठी थी चुपचाप ।
बारिश के संहार पर,करती बहुत विलाप ।।

रौद्र रूप बरसात का, लील गया सुख - चैन ।
रोते- रोते दिन कटा, रोते -रोते रैन ।।

कच्चे पक्के झोंपड़े , बारिश गई समेट ।
जन - जीवन तूफान के, चढ़ा वेग की भेंट ।।

मंजर वो तूफान का, कैसे करूँ बयान ।
खौफ मौत का कर गया,  आँखों को वीरान ।।

उड़ जाऐंगे होश जब, देखोगे तस्वीर ।
देख बाढ़ का  दृश्य वो , गया कलेजा चीर ।

सुशील सरना / 2-8-24

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Sushil Sarna on August 9, 2024 at 3:05pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 8, 2024 at 6:22am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुन्दर दोहावली हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on August 7, 2024 at 9:50pm

आदरणीय अशोक रक्ताले जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on August 7, 2024 at 6:38pm

आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, बारिश की अति पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

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