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हूँ किसके ग़म का सताया न पूछिये साहिब (ग़ज़ल)

1212 / 1122 / 1212 / 22(112)

हूँ किसके ग़म का सताया न पूछिये साहिब

जफ़ा-ए-इश्क़ का क़िस्सा न पूछिये साहिब [1]

तमाम उम्र उसे दूर से ही देख के बस

सुकून कितना है पाया न पूछिये साहिब [2]

लहू भी थम सा गया दर्द को भी राहत है

प ज़ख़्म कितना है गहरा न पूछिये साहिब [3]

अगरचे जब मैं चला था तो हाथ ख़ाली थे

सफ़र में क्या है गँवाया न पूछिये साहिब [4]

ग़ुरूर उनको किसी बात पर नहीं है मगर

इसी पे नाज़ है कितना न पूछिये साहिब [5]

तमाम ज़िन्दगी ठहराव के तजस्सुस में

कहाँ कहाँ नहीं भटका न पूछिए साहिब [6]

पता है मुझको ये 'शाहिद' कहाँ से आया हूँ

मगर किधर को है जाना न पूछिए साहिब [7]

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on October 18, 2022 at 11:56am

जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, बहुत उम्द: ग़ज़ल कही आपने,सभी अशआर अच्छे हुए हैं, मेरी तरफ़ से मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ ।

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on October 16, 2022 at 1:04pm

आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब, आपकी दाद और हौसला-अफ़ज़ाई के लिए तह-ए-दिल से शुक्रगुज़ार हूँ। टंकण त्रुटि के बारे में बताने के लिए बहुत शुक्रिय: जनाब।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 15, 2022 at 7:16pm

'ग़ुरूर उनको किसी बात पर नहीं है मगर

इसी पे नाज़ है कितना न पूछिये साहिब'.... क्या गहराई है, वाह! बहुत ख़ूब। 

आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब, उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ। शे'र 2,3,4 में साहिब में टंकण त्रुटि देख लें। 

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