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ग़ज़ल : बहुत वो देर लगी आग दिल लगाने में

1212     1122     1212     22 / 122

 

बहुत  सी देर लगी आग दिल  लगाने  में 

उन्होंने खेल जो खेला उसे  उसे मिटाने में 

अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !

लगेगा वक़्त अभी आग वो  बुझाने  में 

वो रात कल भी तो गुज़री है भारी मुझ पर जाँ 

 अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में

तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी

कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने में

मुझे हुनर है वो हासिल कि लौट आँऊँगा

हरा चुका हूँ कभी मौत को मिटाने में

हदें जो भूले हैं हालात को समझने में 

हैं रोए हम सदा दुनिया हँसाते जाने में

लगे तुम्हें न नज़र दुश्मनों की अब 'चेतन'

करे मदद तुम्हें भी कोई झलमिलाने में

मौलिक व अप्रकाशित 

प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

Views: 377

Comment

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Comment by Mahendra Kumar on October 13, 2022 at 8:03pm

आदरणीय चेतन जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आदरणीय समर कबीर सर की इस्लाह बहुत अच्छी है। आपको उसके के अनुसार अपनी ग़ज़ल में परिवर्तन कर लेना चाहिए था जो कि आपने नहीं किया। ख़ैर रचना पर अन्तिम निर्णय आप ही का रहेगा। टिप्पणियाँ आपको डिलीट नहीं करनी चाहिए थीं। यह सीखने-सिखाने का मंच है। टिप्पणियों से सभी का लाभ होता है। सादर।

Comment by Chetan Prakash on September 27, 2022 at 9:13am

आदाब,  समर कबीर साहब,  शुभ प्रभात  ! आदरणीय,  आपकी  सभी टिप्पणियों का मैं चूँकि  संज्ञान ले चुका था  सो , मुआफ  करें मैंने उन्हें  हटा  दिया  । आपने  बहुत कृपा की, इस नाचीज  की अदना  सी  कोशिश का एक बार  फिर  नोटिस  लिया और अपने  बहुमूल्य  समय  एव॔  परामर्श  देकर  कृतार्थ  किया।  नवाजिश, मोहतरम  !

Comment by Samar kabeer on September 26, 2022 at 6:16pm

बाक़ी टिप्पणियाँ कहाँ गईं भाई?

Comment by Samar kabeer on September 26, 2022 at 4:46pm

'उन्होंने खेल  जो  खेला उसे मिटाने में '---ये मिसरा अब बह्र में हो गया है I 

' ' की कोशिशें बहुत जीवन यहाँ बचाने में"-- ये मिसरा अभी बहर में नहीं है क्योंकि 'बहुत' शब्द का वजन 12 हे और इसे 11 पर नहीं लिया जा सकता , इसे यूँ कह सकते हैं :-

'की कोशिशें बड़ी जीवन यहाँ बचाने में " 

'हैं रोए उम्र  भर हँसाते  जाने  में'-- ये मिसरा बह्र में नहीं है, इसे यूँ कर लें तो बहर में हो जाएगा :-

'तमाम उम्र वो रोए हँसाते जाबे में' 

//रब्त  पर इसके बाद आऊँगा! //

बहतर है 

'मुझे हुनर रहा हासिल है लौट आऊंगा "--ये मिसरा बह्र में हो गया है है लिकिन इसका वाक्य विन्यास  अभी ठीक नहीं है,, इसे यूँ कह सकते हैं :-

'हुआ हुनर मुझे हासिल तो लौट आऊँगा'

'निकल आये अभी सूरत वो जगमगाने में "--ये मिसरा अभी बह्र में नहीं है , उचित लगे तो मक़्ता यूँ कह सकते हैं :-

'तुम्हें लगे न नज़र दुश्मनों की अब 'चेतन' 

सितारे साथ बहुत से हैं जगमगाने में '

आप एक क़ाबिल शख़्सियत हैं थोड़ी सी तवज्जुह देंगें तो बहुत आसानी से अच्छी ग़ज़ल कह लेंगे मेरी दुआएँ आपके साथ हैं 

Comment by Chetan Prakash on September 26, 2022 at 4:21pm
अफसोस, मतले के सानी में 'उसे' दो बार टाइप हो गया है, कृपया एक 'उसे' रद्द मान ले, साभार !

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