For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : बहुत वो देर लगी आग दिल लगाने में

1212     1122     1212     22 / 122

 

बहुत  सी देर लगी आग दिल  लगाने  में 

उन्होंने खेल जो खेला उसे  उसे मिटाने में 

अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !

लगेगा वक़्त अभी आग वो  बुझाने  में 

वो रात कल भी तो गुज़री है भारी मुझ पर जाँ 

 अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में

तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी

कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने में

मुझे हुनर है वो हासिल कि लौट आँऊँगा

हरा चुका हूँ कभी मौत को मिटाने में

हदें जो भूले हैं हालात को समझने में 

हैं रोए हम सदा दुनिया हँसाते जाने में

लगे तुम्हें न नज़र दुश्मनों की अब 'चेतन'

करे मदद तुम्हें भी कोई झलमिलाने में

मौलिक व अप्रकाशित 

प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'

Views: 384

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on October 13, 2022 at 8:03pm

आदरणीय चेतन जी, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। आदरणीय समर कबीर सर की इस्लाह बहुत अच्छी है। आपको उसके के अनुसार अपनी ग़ज़ल में परिवर्तन कर लेना चाहिए था जो कि आपने नहीं किया। ख़ैर रचना पर अन्तिम निर्णय आप ही का रहेगा। टिप्पणियाँ आपको डिलीट नहीं करनी चाहिए थीं। यह सीखने-सिखाने का मंच है। टिप्पणियों से सभी का लाभ होता है। सादर।

Comment by Chetan Prakash on September 27, 2022 at 9:13am

आदाब,  समर कबीर साहब,  शुभ प्रभात  ! आदरणीय,  आपकी  सभी टिप्पणियों का मैं चूँकि  संज्ञान ले चुका था  सो , मुआफ  करें मैंने उन्हें  हटा  दिया  । आपने  बहुत कृपा की, इस नाचीज  की अदना  सी  कोशिश का एक बार  फिर  नोटिस  लिया और अपने  बहुमूल्य  समय  एव॔  परामर्श  देकर  कृतार्थ  किया।  नवाजिश, मोहतरम  !

Comment by Samar kabeer on September 26, 2022 at 6:16pm

बाक़ी टिप्पणियाँ कहाँ गईं भाई?

Comment by Samar kabeer on September 26, 2022 at 4:46pm

'उन्होंने खेल  जो  खेला उसे मिटाने में '---ये मिसरा अब बह्र में हो गया है I 

' ' की कोशिशें बहुत जीवन यहाँ बचाने में"-- ये मिसरा अभी बहर में नहीं है क्योंकि 'बहुत' शब्द का वजन 12 हे और इसे 11 पर नहीं लिया जा सकता , इसे यूँ कह सकते हैं :-

'की कोशिशें बड़ी जीवन यहाँ बचाने में " 

'हैं रोए उम्र  भर हँसाते  जाने  में'-- ये मिसरा बह्र में नहीं है, इसे यूँ कर लें तो बहर में हो जाएगा :-

'तमाम उम्र वो रोए हँसाते जाबे में' 

//रब्त  पर इसके बाद आऊँगा! //

बहतर है 

'मुझे हुनर रहा हासिल है लौट आऊंगा "--ये मिसरा बह्र में हो गया है है लिकिन इसका वाक्य विन्यास  अभी ठीक नहीं है,, इसे यूँ कह सकते हैं :-

'हुआ हुनर मुझे हासिल तो लौट आऊँगा'

'निकल आये अभी सूरत वो जगमगाने में "--ये मिसरा अभी बह्र में नहीं है , उचित लगे तो मक़्ता यूँ कह सकते हैं :-

'तुम्हें लगे न नज़र दुश्मनों की अब 'चेतन' 

सितारे साथ बहुत से हैं जगमगाने में '

आप एक क़ाबिल शख़्सियत हैं थोड़ी सी तवज्जुह देंगें तो बहुत आसानी से अच्छी ग़ज़ल कह लेंगे मेरी दुआएँ आपके साथ हैं 

Comment by Chetan Prakash on September 26, 2022 at 4:21pm
अफसोस, मतले के सानी में 'उसे' दो बार टाइप हो गया है, कृपया एक 'उसे' रद्द मान ले, साभार !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service