For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,
रिमझिम रिमझिम ,
बरसे हैं बादल ,
तड़पे हैं दिल  ,
बेकरारी का आलम ,
पिया पिया बोले ,
मन का पपिहरा ,
होवे पागल मन ,
तडपाये जियरा ,
जब सावन आये ,
हरियाली लाये ,
मन मस्तिष्क  में ,
ख्याल ये लाये ,
मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,

Views: 807

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on July 11, 2011 at 7:27pm
Bahut acchha
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:35pm
dhanyabad ashish bhai
Comment by आशीष यादव on July 11, 2011 at 5:34pm
Sundar rachna guru ji. Badhai.
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:29pm
dhanyabad saurabh bhaiya

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2011 at 5:21pm
//मन की मस्ती ,
तन की चाहत ,
आता हैं सावन ,
मिलती हैं राहत ,//
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ.. .. इन पंक्तियों को या तो भोजपुरी की समझें या हिन्दी की .. ..निर्भर पढ़नेवाले की मनोदशा पर है.. 
ग़ज़ब.
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:14pm
dhanyabad sir ji admin ji se niwedan hain ke ko ka kar de

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2011 at 5:11pm

बहुत सधी और सीधी ज़ुबान में यह रचना अपना सफ़र पूरा करती है.  इस उभयभाषी रचना को मेरी बधाई. 

उभयभाषी इस लिये कि पंक्ति ’मन के पपिहरा’ से ’के’ को हटा कर ’का’ कर दिया जाय तो पूरी रचना हिन्दी भाषा में हो जायेगी, वर्ना इस रचना की ज़ुबान भोजपुरी लगती है.  इस संयत प्रयास को पुनः बधाई.

बहुत-बहुत बधाई रवि भाई.... ...

Comment by Nirajan Pravat Luitel on July 11, 2011 at 5:10pm
वाह वाह!!
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:10pm
dhanayabad amrendar ji
Comment by Rash Bihari Ravi on July 11, 2011 at 5:05pm
dhanyabad sir ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
10 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
16 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service