२१२२/२१२२/२१२२
गीत में सद् भावना का ज्वार कम है
 सर्वहित की कामना का ज्वार कम है।१।
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 दे रहे  सब  सान्त्वना  पर  जानता हूँ
 शुद्ध मन की प्रार्थना का ज्वार कम है।२।
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 सिद्ध कैसे  झट  से  होगी  योग  माया
 आज साधक साधना का ज्वार कम है।३।
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 सत्य मर्यादा टिकेगी किस तरह अब
 हर किसी में वर्जना का ज्वार कम है।४।
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 हर नगर श्मसान जैसा आज दिखता
 किस नयन में वेदना का ज्वार कम है।५।
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 क्यों 'मुसाफिर' है भुलावे में बहुत तू
 कौन से तन वासना का ज्वार कम है।६।
मौलिक/अप्रकाशित
 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आदरणीय लक्षमण जी हिन्दी भाषा के शब्दों से सजी इस सुंदर गजल के लिये हार्दिक बधाई प्रस्तुत है
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