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ग़ज़ल-क्या करे कोई

221 2121 1221 212

1

हमसे शगुफ़्तगी की तमन्ना करे कोई 

अब और दर्द देने न आया करे कोई

2

आकर क़रीब इश्क़ जताया करे कोई

सच्चा नहीं तो झूठा ही वादा करे कोई

3

करवट बदलने से भी कहाँ नींद आएगी

जब आँख से ही ख़्वाब चुराया करे कोई

4

जो राज़ को भी राज़ बना कर न रख सके

उस आदमी से दोस्ती भी क्या करे कोई

5

आज़ाद फ़िक्र ए आशियाँ से हो चुके हैं हम

तूफ़ान अब हवा में न लाया करे कोई 

6

'निर्मल' बदल के देख ले जीने के रास्ते

ऐसा न हो तू बाद में शिकवा करे कोई 

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Rachna Bhatia on March 3, 2021 at 4:49pm

आदरणीय सर्, सादर नमस्कार। 

हाँ जी सर्, फिर से कोशिश करती हूँ।

Comment by Samar kabeer on March 3, 2021 at 2:33pm

//ख़्वाबों में रोज़ रात को आया करे कोई

हौले से हाल दिल का सुनाया करे कोई//

दोनों मिसरों में 'या' की क़ैद हो रही है ।

Comment by Rachna Bhatia on March 3, 2021 at 1:59pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार। सर् यह मतला क्या सहीह है ?

221 2121 1221 212

ख़्वाबों में रोज़ रात को आया करे कोई

हौले से हाल दिल का सुनाया करे कोई

Comment by Rachna Bhatia on March 3, 2021 at 1:17pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् हौसला बढ़ाने के लिए आपकी आभारी हूँ।सर् मतला सुधार कर दिखाती हूँ।

Comment by Samar kabeer on March 2, 2021 at 7:50pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखें ।

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