For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं घबरा जाता हूँ यह सोच सोच कर ,
कैसे कोई गरीब अपना घर चलाता होगा,

सौ लाता है मजदूर पूरे दिन मर कर,
कैसे भर पेट दाल रोटी खा पाता होगा,

बीमार मर जायेगा दवा का दाम सुनकर,
हे! ईश्वर कैसे वो ईलाज कराता होगा,

मुर्दा डर जायेगा लकड़ी की दर सुनकर,
कैसे कोई मजलूम शव जलाता होगा ,

लगी है आग गंगा में महंगाई की "बागी",
कैसे कोई अधनंगा डुबकी लगाता होगा ,

Views: 938

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on July 18, 2010 at 2:15pm
बहुत अच्छी कविता बनी है ये महंगाई पर, गरीबों के जीवन पे लिख कर आपने बहुत नेक काम किया. और फिर से लोगो का ध्यान आकर्षित किया गरीबी की तरफ.
यहाँ बहुत से लोग तो ऐसे है की गरीब के पुरे दिन की कमाई का कई गुना तो अपने शराब और सिगरेट में एक ही दिन में फूंक देते है. यहाँ गरीबी के सम्बन्ध में एक पंक्ति याद आ रही है की,
"श्वानो को मिलता दूध भात, भूखे बच्चे अकुलाते है."
"माँ की छाती से चिपक ठिठुर, जाड़े की रात बिताते है."

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 18, 2010 at 2:10pm
आदरणीया बहन आशा जी , बड़े भाई बब्बन जी, परम मित्र राणा जी और प्रीतम जी, आप लोगो का मैं ह्रदय से आभारी हूँ जो आपने अपना आशीर्वाद और प्यार इस कविता को दिया, आप सब का प्रीत ही है जो मेरे लिये बिटामिन बी-काम्प्लेक्स का काम करती है और आगे लिखने की प्रेरणा प्रदान करती है,
Comment by asha pandey ojha on July 18, 2010 at 2:00pm
@ Ganesh bhaiya aapkee yah kavita padhkar meree aankhon me aansu aa gaye ...?? ye gareeb zindgee ka ythrthwadee chitran kiya hai aapne .. rom rom tadp utha hai is peeda ko padhkar aesa lag rha hai jaise ki main in lamho ko ji rahee hun .. is kavita ko post karne ke liye aap ka dil se aabhar

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on July 18, 2010 at 1:28pm
भूख, बीमारी, लाशें, अधनंगापन, सारी चीजे महंगाई से प्रभावित है....बड़ा मार्मिक चित्रण किया है महंगाई के इर्द गिर्द पिसते एक आम इन्सान के जीवन का...बागी भैया साधुवाद!!!!
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on July 17, 2010 at 11:51pm
सौ लाता है मजदूर पूरे दिन मर कर,
कैसे भर पेट दाल रोटी खा पाता होगा,

वाह गणेश भैया वाह....एकदम हृदय स्पर्शी कविता लिखा है आपने.......बात सही भी है जहाँ हुमलोग एसी मे बैठ कर हवा खाते वही ये मजदूर भाई अपना खून जला कर हमारे लिए काम करते हैं.....हमलोग पान,बीड़ी,सिगरेट पर दिनभर मे 100 उड़ा देते होंगे लेकिन वो दिनभर के मेहनत से 100 लाते हैं तब किसी तरह दाल रोटी का काम चलता है.....
एकदम हृदय स्पर्शी कविता है भाई....बहुत सही.....
Comment by baban pandey on July 17, 2010 at 9:56pm
गणेश भाई , लगता है आप स्वाम उस मजदूर के रूप में अपने को देख कर लिखे है badhai

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
yesterday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
yesterday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service