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हम तो हल के दास ओ राजा-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२/२२/२२/२२


हम तो हल के दास ओ राजा
कम देखें  मधुमास  ओ राजा।१।
*
रक्त  को  हम  हैं  स्वेद  बनाते
क्या तुमको आभास ओ राजा।२।
*
अन्न तुम्हारे पेट में भरकर
खाते हैं सल्फास ओ राजा।३।
*
पीता  हर  उम्मीद  हमारी
कैसी तेरी प्यास ओ राजा।४।
*
हम से दूरी  मत  रख इतनी
आजा थोड़ा पास ओ राजा।५।
*
खेती - बाड़ी  सब  सूखेगी
जो तोड़ेगा आस ओ राजा।६।

मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment by Aazi Tamaam on February 4, 2021 at 8:27pm

Beautiful gazal on current situation

Comment by सालिक गणवीर on February 4, 2021 at 7:40pm

आदरणीय भाई  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन
सामाजिक सरोकार से भरपूर उम्दः ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें.

Comment by सालिक गणवीर on February 4, 2021 at 7:17pm

आदरणीय भाई  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
सादर अभिवादन
सामाजिक सरोकार से भरपूर उम्दः ग़ज़ल के लिए बधाइयाँ स्वीकार करें.

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