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दौड़ अपनी-अपनी (लघु- कथा)

कल मानव और विभा की शादी के दस वर्ष पूरे हो रहे थे। सो इस बार की मैरिज एनीवर्सरी विशेष थी। दाम्पत्य जीवन में कोई अभाव प्रकटतः तो विभा को नहीं था। दो बच्चे, बेटी मानसी और बेटा विशेष प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहे थे। विभा एम, ए. बी. एड. थी, मिजाज़ से हाउस वाइफ थी। सारा दिन चौका बर्तन, सफाई, बच्चों की सुख-सविधा में कोई कमी न रहे इसमें निकल जाता था । हाँ मानव से ज़रूर उसे शिकायत थी। मानव एक कस्बे के महाविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। उनका ज्यादातर समय अध्ययन और अध्यापन में ही निकल जाता और बचता तो दोनों बच्चों के होम-वर्क कराने में निकल जाता था। रविवार की छुट्टी विभिन्न परियोजनाओं में उनके काॅलेज को विश्व विद्यालय अथवा यू. जी. सी. से सभी गान्ट्स मिल सके, प्रोजेक्ट तैयार करने मे लग जाता था । कभी भाग्य से थोड़ा अवकाश भी मिलता तो प्राचार्य यह पूछने के लिए आ धमकते कि अमुक प्रोजेक्ट पूरा हो गया अथवा नही । कभी- कभी तो स्टूडैन्ट्स अपनी व्यक्तिगत समस्याएं लेकर आ पहुँचते तो और दिक्कत हो जाती।
" मानव के पास बस उस के लिए ही समय नहीं था, विभा सोच रही थी, " और, अब जनाब कई हजार रुपये शादी की दसवीं वर्ष-गाँठ की औपचारिकता पर फूँकने जा रहे थे। छी...ऐसे आडम्बर पर..." ,.उसे घिन आने लगी थी। सोचते-सोचते कब विभा की आँख लग गयी उसे पता ही नहीं चला। सुबह जब उसने आँखें खोली तो मानव उसे झिंझोड़ रहे थे।" अरे उठोगी नहीं क्या, आठ बज चुके है। तुम्हें तो पता है कितनी तैयारिया करनी है,  कितने काम करने को हैं।" विभा का असन्तोष गुस्सा बनकर फूट निकला,
 शादी की वर्ष-गाँठ के लिए इतनी चिन्ता और जिसे दस साल पहले गाँठ बाँधकर लाए थे, उस से भी कभी पूछा, विभा कैसी हो, तुम उदास क्यों रहती हो। बस वक्त-ज़रूरत बाँहों में भरा और भोग लिया। हरम की दासी हूँ, तुम्हारी या रखैल बताओ तो जरा।"
मानव को काटो तो खून नही...... पहली बार आज उसे अहसास हुआ । उससे अब तक बहुत बड़ी चूक हो  रही थी। उसने आगे बढ़कर विभा को बाँहों में समेट लिया, " आइ लव यू मोस्ट, माई डियर !"
अब विभा की आँखों से गंगा-जमुना एक साथ बह रहीं थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 6, 2020 at 7:47am

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन । अच्छी कथा हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Chetan Prakash on December 4, 2020 at 7:50pm

 मोहतरम जनाब, समर कबीर साहब, आदाब, आपने लघुकथा " दौड़ अपनी अपनी" तक पहुँचने की ज़हमत की, इसके लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया। लघु कथा को आपने सराहा, अच्छा लगा। कृपा बनाएँ रखे, आदरणीय !

Comment by Samar kabeer on December 4, 2020 at 3:45pm

जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है, बधाई स्वीकार करें 

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