For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तरह तरह के दिवस मनाए जाते। कोई दिन पर्यावरण का होता,तो कोई बाल दिवस आदि आदि।शोर होते,जश्न भी। और दिवस चाहे जैसे भी लगे हों,पर बाल दिवस की चर्चा सुन कुछ शब्द कसमसाए।मुखर होने लगे।ध्वनि फूटी -
' हम कहने के माध्यम हैं।'
' हम तुम्हारे माध्यम हैं।' दूसरी आवाजें आने लगीं।
शब्द जैसे चरमराने लगे। टूटन का अहसास हुआ।वे कराह ते हुए बोले -
' तुम लोग कौन हो?'
' खूब,बहुत खूब!अपने निर्माताओं को ही बिसरा बैठे तुमलोग।' ताना भरी आवाजें गूंजने लगीं।
' निर्माता?हमारे ?' शब्द चौंके।
' चकित मत हो तुमलोग।आज जिससे बने हैं,उसे भुला देने का चलन जोरों पर है।तुम कुछ अलग नहीं हो।' अदृश्य आवाजें प्रबल होने लगीं।
शब्द अपने गाल सहलाने लगे, मानो तमाचे पड़े हों। उन्होंने एक दूसरे को देखा,फिर मद्धिम स्वर में बोले,' बता भइए!तुम सब कौन हो?क्या चाहते हो?'
' पहचान,और क्या?' रहस्य और गहरा गया।
' कैसी पहचान?हम भ्रमित हैं।आप सब अपने परिचय दें।' शब्दों ने हथियार डाल दिए।
' अक्षर हैं हम, जिनसे आप सब नुमायां हैं।' उत्तर मिला।
' एं एं...?' शब्द चीखे।शर्मिंदा भी हुए।
' न चौंको,न लजाओ।थी आज की हकीकत है कि लोग अपनी जमीन ही भुला देते हैं।' और दोह रे झन्नाटेदार झापड़ रसीद हुए।
' अब बस भी करो मेरे खुदाओ!अक्षर से शब्द तक तो पहुंच गए न?' एक जानना स्वर उभरा।
' आप कौन?' समवेत स्वर लहराया।
' लघुकथा हूं मैं,लघुकथा।तुम सबकी अभिव्यंज ना का स्वरूप हूं मैं।' आवाज निकट आ चुकी थी।
' नमन आदरणीया,नमन।
' प्रणम्य तो तुम सब हो भई!तुमने मुझे रूप और वाणी दी है।' लघुकथा बोली।
' महत्ता आपकी है देवि!हम आपमें स्थापित हैं।' शब्द - आखर
एक साथ बोल पड़े।
' हम परस्पर पिरोए हुए हैं।हमारा संबंध अन्योन्यश्रय है।' लघकथा ने अन्विति जाहिर की।
' जय हो।लघुकथा की जय हो।' उद्घोष होने लगा।
' व्यर्थ का तुमुल रोर है यह। बंद करो।' लघुकथा ने खिन्नता जाहिर की।
' क्यों देवि? क्या हुआ?'
' देखा नहीं तुमने?लोग मेरे नाम से अब अलग अलग दिवस मनाने पर तुले हैं। हम यहां सामंजस्य स्थापित करने चले हैं।वे वहां विभाजन - विखंडन करने पर आमादा हैं।'
' बेशक उनका कृत्य निंद्य है। हम उनकी परिधि से परे रहेंगे। वे मना लें अपने मन के दिवस।' शब्द वृंद सुदृद्ध आवाज में गरजने लगा।
' अच्छा हो मेरा कोई दिवस न हो।हो, तो बस एकात्मता का सुर।' इतना कह लघुकथा अन्तर्ध्यान हो गई।
" मौलिक व अप्रकाशित"  

Views: 344

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on June 21, 2020 at 6:16pm

आपका आभार आदरणीय समर जी।नमन।

Comment by Samar kabeer on June 21, 2020 at 3:00pm

जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी लघुकथा हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Manan Kumar singh on June 20, 2020 at 9:12am

कृपया कुछ शुद्धियों पर गौर करें,जो टंकण जनित अशुद्धियां हो गई हैं।

... यही आज की हकीकत है। और ....... जनाना स्वर उभरा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service