For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिंदा तिफ़्ल हो उसके भी पर तो रहते हैं(११० )

(1212 1122 1212 22 /112 )

.

परिंदा तिफ़्ल हो उसके भी पर तो रहते हैं
ग़रीब हो भले ख़्वाबों में घर तो रहते हैं
**
भले ही ज़िंदगी हासिल हुई अमीरों सी
मगर उन्हें भी कुछ अन्जाने डर तो रहते हैं
**
हुआ है बंद कभी एक रास्ता मत डर
खुले कहीं न कहीं और दर तो रहते हैं
**
मिला न एक सुबू गाँव में तमन्ना का
भले ही हसरतों के कूज़ा-गर  तो रहते हैं
**
सताए धूप मुसीबत की ,छाँव कर देंगे
हर एक घर में पुराने शजर तो रहते हैं
**
भुलाना जान के ऐबों को अपने ठीक नहीं
कि ऐब दीदा-ए-अहल-ए-नज़र तो रहते हैं
**
है अब भी  मुल्क में जारी तिजारत-ए-पैकर
हवस के आज तलक सौदा-गर तो रहते हैं
**
दिखाए ख़ौफ़ जो बच्चों को मान कर चलिए
तमाम उम्र कुछ उनके  असर तो रहते हैं
**
हमेशा फैसले के वक़्त ग़ौर कर लें 'तुरंत '
हयात भर ही  कुछ अगर और  मगर तो रहते हैं
**
गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 961

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on June 16, 2020 at 3:47pm

Anvita जी , Dimple Sharma जी , Ravi Shukla जी , रचना पर उपस्थित होकर सराहना के लिए सादर आभार | 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on June 16, 2020 at 3:23pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' साहिब, आपको इस लाजवाब ग़ज़ल पे ढेरों बधाई। मतले से लेकर मक़्ते तक हर शे'र में कोई गहरा फ़लसफ़ा है या कोई गंभीर मुद्दआ उठाया है आपने। आदरणीय, मतले में 'ख़्वाबों' में, चौथे शेर में 'कूज़ा-गर' में, और मक़्ते में 'फ़ैसले' में नुक़्ते छूट गए हैं।

/भुलाना जान के ऐबों को अपने ठीक नहीं
कि ऐब दीदा-ए-अहल-ए-नज़र तो रहते हैं/
छटे शे'र में 'में' की कमी महसूस हुई: ऐसा लगता है कि 'ऐब नज़र वालों की नज़र में रहते हैं' होना चाहिए। बाक़ी हो सकता है मेरे समझने में कमी हो।

सातवें शेर के ऊला में 'अभी है' की जगह 'है अब भी' कह कर देखियेगा, शायद आपको ज़ियादा उचित लगे:

1212  /  1122  /  1212  /  22 (112)
है अब भी मुल्क में जारी तिजारत-ए-पैकर
हवस के आज तलक सौदा-गर तो रहते हैं

आठवें शेर के सानी में 'इनके' की बजाए 'उनके' कह कर देखियेगा, हो सकता है आपको ज़ियादा उचित लगे:

1212  /  1122  /  1212  /  22 (112)
दिखाए ख़ौफ़ जो बच्चों को मान कर चलिए
तमाम उम्र कुछ उनके असर तो रहते हैं

मक़्ते के सानी मिसरे में 'कुछ अगर' बह्र में नहीं लग रहा, आदरणीय:
1212 / 1122 / 1212 / 22 (112)
/हमेशा फैसले के वक़्त ग़ौर कर लें 'तुरंत '
सभी की ज़ीस्त में कुछ अगर मगर तो रहते हैं/

अगर आपको मुनासिब लगे तो इस मिसरे को यूँ कहा जा सकता है:
1212 / 1122 / 1212 / 22 (112)
हर एक दिल में अगर और मगर तो रहते हैं

Comment by Samar kabeer on June 16, 2020 at 2:56pm

जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

'सभी की ज़ीस्त में कुछ अगर मगर तो रहते हैं'

इस मिसरे की बह्र चेक करें ।

Comment by Ravi Shukla on June 16, 2020 at 2:35pm

वाह वाह बहुत उम्‍दा गजल कही आदरणीय गिरधारी सिहं जी मुबारक बाद पेश है ।

मिला न एक सुबू गाँव में तमन्ना का
भले ही हसरतों के कूजा-गर तो रहते हैं
**
सताए धूप मुसीबत की छाँव कर देंगे
हर एक घर में पुराने शजर तो रहते हैं

 ये दो शेर बहुत अच्छे लगे । 

Comment by Dimple Sharma on June 16, 2020 at 12:40pm

आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत'तुरंत'जी नमस्ते, बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय बधाई स्वीकार करें।
प्रणाम

Comment by Anvita on June 16, 2020 at 10:53am
आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत"तुरंत "जी,सादर प्रणाम ।आपकी रचना बहुत ही अच्छी लगी ।कृपया बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
2 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
19 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service