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ग़ज़ल ( अंधी गली के मोड़ पर.....)

 (221 2121  1221 212)

अंधी गली के मोड़ पे सूना मकान है

तन्हा-सा आदमी अब इस घर की शान है

हमसे उन्होंने आज तलक कुछ नहीं कहा

हर बार उससे पूछा है जो बेज़बान है

हालात-ए- माज़ूर यक़ीनन हुये बुरे

ऊपर चढ़ाई है वहीं नीचे ढलान है

बदक़िस्मती का ये भी नमूना तो देखिये

गड्ढे नहीं मिले थे जहाँ पर खदान है

मरने के बाद भी तो फ़राग़त नहीं मिली

सारे बदन पे बोझ है मिट्टी लदान है

*मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2020 at 4:50pm

आदरणीय समर कबीर साहब .

आदाब
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.आपके मार्गदर्शन और स्नेह 

की मुझे सख्त ज़रूरत है. आपकी इस्लाह पर तुरंत अमल कर आपको सूचित करता हूँ.ईद की मुबारकबाद कुबूल फरमायें.

Comment by सालिक गणवीर on May 25, 2020 at 4:44pm

आदरणीय भाई डा.छोटे लाल सिंह जी.
ग़ज़ल पर उपस्थिति एवं सराहना के लिए हृदय से आभार.

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on May 25, 2020 at 9:00am

सारे वदन पर बोझ है मिट्टी लदान हैं, हकीकत को बयां करती बहुत ही दमदार गजल आदरणीय गणवीर साहब बहुत बहुत बधाई

Comment by Samar kabeer on May 25, 2020 at 6:21am

जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।

'हर बार उनसे पूछा है जो बेज़बान है'

इस मिसरे में 'उनसे' की जगह "उससे" कर लें ,'उनसे' के कारण रदीफ़ 'हैं' हो रही है,ग़ौर करें ।

'माज़ूर की हालत का तमाशा बना दिया

ऊपर चढ़ाई है वहीं नीचे ढलान है'

इस शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है,और शैर का भाव भी स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।

Comment by सालिक गणवीर on May 24, 2020 at 11:38am

आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी

सादर अभिवादन

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 24, 2020 at 9:00am

आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

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