For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कई बात अभी बाकी है

कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है

दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है

 

जो टूटे है ख्वाब सारे वो बैठ के जोड़ेंगे

छाले दिल में है जितने भी इसी हाथ से फोड़ेंगे

थोड़ा तुम दिल को बहलाओ के ज़ज़्बात अभी बाकी है

के आज हद से गुज़र जाओ मुलाकात अभी बाकी है

 

तमन्ना जो भी है दिल में आज पूरी सारी कर लो

हम खाएं खो ना जाएं अपने बाहों में भर लो

करेंगे हम ना अब इंकार के इकरार अभी बाकी है

ना होंगे फिर ये हालात के ऐतबार अभी बाकी है

 

आज कुछ भी कह जाने की इज़ाज़त है तुम्हे

हाल-ए-दिल अपना सुनाने की इज़ाज़त है हमे

एक बार फिर से रुलाओ के जाम अभी बाकी है

गले से हमको को लगा लो कई याद अभी बाकी है

 

रहे हम राह तकते के तुम लौटे ही नहीं

खड़े हम अब भी मिल जाएँगे उसी मोड़ पे कहीं

हम न छोड़ेंगे कभी हाथ के साथ अभी बाकी है

आँखें देंगी खुद जवाब सवालात कई बाकी है

 

कुछ पल और ठहर जाओ के रात अभी बाकी है

दो घूंट कश के लगाओ के कई बात अभी बाकी है

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on May 3, 2020 at 7:10pm

आद0 अमन सिन्हा जी,, पहले तो इस मंच के कुछ सामान्य सी परम्परा है जिसमें रचनाकारों को आदरणीय जैसे शब्दों से पुकारा जाना एक है। आप निश्चय ही लेखन की ऊँचाई हासिल करेंगे। बस लगे रहिये। मेरी अनन्त शुभकामनाएं आपको निवेदित हैं। सादर

Comment by AMAN SINHA on May 3, 2020 at 6:46pm

@सुरेन्द्र नाथ सिंह जी , हिन्दी लिखना भी इतना सरल नहीं है। मेरे जैसे नौसिखिये के लिए तो बिलकुल भी नहीं। मैंने तो वही लिखा जो कलम ने मुझसे लिखवाया। मैंने कभी भी कोई रचना किसी शिल्प निर्माण की भावना से नहीं लिखा। न तो मैं कोई लेखक हूँ न हीं रचनाकार। सीखने का दौर चल रहा है। देखते है मेरी कला मे धार कब तक आती है। 

धन्यवाद 

Comment by नाथ सोनांचली on May 2, 2020 at 6:26pm

आद0 अमन सिन्हा जी सादर अभिवादन। ओ बी ओ पर आपकी पहली रचना से रूबरू हो रहा हूँ। हो सकता है इससे पहले भी कुछ रचनाये आयी हों। इस रचना का शिल्प क्या है क्योंकि मुझे कोई निश्चित शिल्प दिखाई नहीं दिया। भाव सम्प्रेषण उत्तम है। किसी भी पंक्ति के प्रारम्भ में के शब्द खटक रहा है। देखियेगा। बहरहाल इस सृजन पर बधाई स्वीकार कीजिये।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2020 at 8:44am

आ. अमन जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई । रचना को शीर्षक देने की परम्परा भी कायम रखिए जिससे रचना को और बहतरी से समझने में मदद मिलती है । सादर

Comment by AMAN SINHA on April 30, 2020 at 5:39pm

@डा छोटेलाल सिंह 

Comment by AMAN SINHA on April 30, 2020 at 5:38pm

धन्यवाद महाशय, मेरी कई रचनाए "प्रतिलिपि" पर भी उपलब्ध है उन सब पर भी आपकी समीक्षा काम्य है। 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on April 30, 2020 at 9:25am

आदरणीय अमन सिन्हा जी बेहतरीन रचना ,मदहोश कर देने वाली रचना लिखी आपने बहुत बहुत बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service