दीवारें हैं छत हैं
संगमरमर का फर्श भी
फिर भी ये मकान अपना घर नहीं लगता
चुकाता हूँ
मैं इसका दाम, हर तारीख पहली…
ContinueAdded by AMAN SINHA on July 1, 2022 at 11:30am — No Comments
ले चल अपने संग हमराही, उन भूली बिसरी राहों में
जहां बिताते थे कुछ लम्हे हम एक दूजे की बाहों में
चल चले उन गलियों में फिर थाम कर एक दूजे का हाथ
क्या पता मिल जाए हमको फिर वो जुगनू की बारात
जहां चाँद की मद्धिम बुँदे वादी से छन कर आती…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 27, 2022 at 12:25pm — No Comments
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे नैना चार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मुझसा प्यार करो
कब चाहा मैंने के तुम मेरे जैसा इज़हार करो
कब चाहा मैंने के तुम अपने प्रेम का इकरार करो
कब चाहा मैंने के तुम मुझसे मिलने को तड़पो
कब…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 24, 2022 at 10:59am — No Comments
मैं बंजारा, मैं आवारा, फिरता दर दर पर ना बेचारा
ना मन पर मेरा ज़ोर कोई, मैं अपने मन से हूँ हारा
ठिठक नहीं कोई ठौर नहीं, आगे बढ़ने की होड नहीं
कोई मेरा रास्ता ताके, जीवन में ऐसी कोई और नहीं
ना रिश्ता है ना नाता है, बस अपना खुद से वादा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 21, 2022 at 11:20am — No Comments
जागो मेरे वीर सपूतो, मैंने है आह्वान किया
आज किसी कपटी नज़रों ने मेरा है अपमान किया
किसी पापी के नापाक कदम, मेरी छाती पर ना पड़ने पाए
आज सभी तुम प्रण ये कर लो, जो आया, कुछ, ना लौट के जाने पाये
दिखला दो तुम दुश्मन को, तुम भारत के वीर सिपाही…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 17, 2022 at 11:15am — No Comments
क्यों परेशान होता है तू , जिसे जाना है वो जाएगा
हाथ जोड़ कर पैर पकड कर, तू उसको रोक ना पाएगा
वो जाता है तो जाने दे, पर याद न उसकी जाने दे
तू उसको ये अवसर ना दे, वो बाद मे तुझे बहाने दे
जिसको आँसू की क़दर नहीं, ना होने का तेरे असर नहीं
उसे रोक के क्या तू पाएगा, तेरी खातिर जो बेसबर नहीं
तू रोके तो रुक जाएगा, घड़ियाली आँसू बहाएगा
अपनी हर नाकामी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 14, 2022 at 12:30pm — 1 Comment
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, तन ढंकने को तन देती हूँ
मैं बिकती हूँ बाज़ारों में, अन्न पाने को तन देती हूँ
तन देना है मर्जी मेरी, मैं अपने दम पर जीती हूँ
जिल्लत की पानी मंजूर नहीं, मेहनत का विष मैं पिती हूँ
हाथ पसारा जब मैंने, हवस की नज़रों ने भेद दिया
अपनों के हीं घेरे में, तन मन मेरा छेद…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 11, 2022 at 10:24am — No Comments
तू उगता सा सूरज, मैं ढलता सितारा
तेरी एक झलक से मैं छुप जाऊँ सारा
तू गहरा सा सागर, मैं छिछलाता पानी
तू सर्वगुण सम्पन्न मैं निर्गुण अभिमानी
तू दीपक के जैसा मैं हूँ एक अंधेरा
तू निराकार रचयिता, मैं…
ContinueAdded by AMAN SINHA on June 9, 2022 at 11:30am — No Comments
अक्सर मैंने देखा उसको खुद से हीं बातें करते
कभी-कभी बिना कारण हीं खुद में हंसते खुद में रोते
कई दफा तो काटी उसने रातें यूं ही जाग जाग के
कभी किसी पर अटक गई जो पलकें उसकी बिना झपके
बैठे-बैठे खो जाती है वो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 31, 2022 at 9:30am — 2 Comments
क्या रंग है आँसू का कैसे कोई बतलाएगा?
सुख का है या दु:ख का है ये कोई कैसे समझाएगा?
कभी किसी के खो जाने से, कोई कभी मिल जाए तो
कभी कोई जो दूर हो गया, कोई पास कभी आ जाए तो
किस भाव में कितना बहता, कोई ध्यान नहीं रखता
हर हाल में इसका एक ही रंग है, फर्क ना कोई कर सकता
कभी दर्द में बह जाता है, हंसी में भी ये दूर…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 25, 2022 at 11:47am — 2 Comments
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे उलाहना पाओ जितनी, तुम अपने जिद पर अड़ी रहो
गर्भ में ही मारेंगे तुमको, वो सांस नहीं लेने देंगे
कली मसल कर रख देंगे वो फूल नही बनने देंगे
तुम मगर गर्भ से निकल कर अपनी खुशबू बिखरा दो
तुम वीरांगना हो जीवन की, तुम अपने पथ पर डटी रहो
चाहे पथ पर पत्थर फेंके, शिक्षा से रोके तुमको
कुछ पुराने मनोवृत्ति वाले चूल्हे में झोंके तुमको
तुम ना डिगना अपने प्रण से, एकाग्रचित्त हो जमी…
Added by AMAN SINHA on May 21, 2022 at 11:59am — No Comments
मैं धरती बोल रही हूँ,
हाँ-हाँ धरती बोल रही हूँ
अपनी व्यथा सुनाने को मैं
मैं कब से डोल रही हूँ
मैं धरती बोल रही हूँ
मैंने ही तुमको जन्म दिया…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 16, 2022 at 11:30am — 2 Comments
दर्द है ये दो दिलों का, एक का होता नहीं
जागते है संग दोनों, कोई भी सोता नहीं
ये ख़ुशी है या के ग़म है, कोई कह सकता नहीं
दर्द का वैसे भी यारो, रंग होता हीं नहीं
याद आती है घडी वो, जब पहली बार हम मिले थे
बसंत के वो दिन नहीं थे, पर फूल दिल में खिले थे
क्या हुआ जो…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 13, 2022 at 1:00pm — No Comments
ख़यालों में मेरे ख़याल एक आता है
भरम मेरा मुझको यूं भरमा के जाता है
दिखता नहीं है पर कोई बातें करता है
नहीं साथ मेरे पर महसूस होता है
मैं अंजान उससे पर वो जानता है
वो है बस यहीं पर ये दिल मानता है
दिखा जो कहीं पर तो पहचान लूंगी
यही मर्ज़ मेरा है मैं जान लूंगी
वो है झोंका हवा का है अंदाज़…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 12, 2022 at 1:31pm — No Comments
तोड़े थे यकीन मैंने मुहल्ले की हर गली में
चैन हम कैसे पाते इतनी आहें लेकर
मौत हो जाए मेहरबा हमपे नामुमकिन है
ठोकरे हीं हमको मिलेंगी उसके दरवाज़े पर
हर परत रंग मेरा यूँ ही उतरता गया
ज़मी थी सख्त मैं मगर बस धंसता हीं गया
गुनाह जो मैंने किये थे बे-खयाली में
याद करके उन सबको मैं बस गिनता…
ContinueAdded by AMAN SINHA on May 6, 2022 at 12:54pm — 1 Comment
है फूलों सी खुशबू तेरे इस बदन में
जी चाहता है मैं साँसों में भर लूँ
अधूरा रहेगा ये इकरार मेरा
पहलू में अपने जो तुझको ना भर लूँ
हंसी से तेरी खिल जाती है कलियाँ
जगमग सी हो जाती है तेरे आने से दुनिया
है किसने मिलाया नशा इस समा में
कदम लड़खड़ाते है देख कर तेरी गालियां
मैं ज़िंदा हूँ साँसे लिए जा रहा…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 30, 2022 at 12:01pm — No Comments
आरज़ू है ये दिल की इस कदर तुझको चाहूँ
आँखों से तुझको छू लूँ प्यास अपनी बुझा लूँ
तमन्ना है यही तुझको बाहों में भर लूँ
ज़रा ही सही प्यार तुझसे मैं कर लूँ
आशिक़ी में तेरी आज खुदको मिटा दूँ
दिल की जो लगी है आज तुझको बता दूँ
कोई कह सके ना ये मैं हूँ के तू है
आज खुदको तुझी में इस कदर मैं मिला…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 29, 2022 at 11:28am — No Comments
कुछ याद सम्हाले रखा है,
हमने दर्द को पाले रक्खा है
हँसते चेहरे के आड़ में हमने,
दिल के छालों को रक्खा है
सब कहते है हम हँसते हैं,
हम अपने अंदर ही बसते हैं
अब सबको हम बतलाएं क्या,
हम तनहाई से कैसे बचते है
अब रोना धोना छोड़…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 28, 2022 at 11:42am — No Comments
वर्षों हुए
एक बार देखे उसको
तब वो पूरे श्रृंगार में होती थी
बात बहुत
करती थी अपनी गहरी आँखों से
शब्द कहने से उसे उलझने तमाम होती थी
इमली चटनी…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 27, 2022 at 11:30am — 1 Comment
थक गया हूँ झूठ खुद से और ना कह पाऊंगा
पत्थरों सा हो गया हूँ शैल ना बन पाऊंगा
देखते है सब यहाँ मुझे अजनबी अंदाज़ से
पास से गुजरते है तो लगते है नाराज़ से
बेसबर सा हो रहा हूँ जिस्म के लिबास में
बंद बैठा हूँ मैं कब से अक्स के लिहाफ में
काटता है खालीपन अब मन कही लगता नहीं
वक़्त इतना है पड़ा के वक़्त ही मिलता…
ContinueAdded by AMAN SINHA on April 22, 2022 at 10:30am — 1 Comment
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