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भोर होने को है देखो

भोर होने को है देखो, छट रहा है अंधेरा 

किस संशय ने तुमको अब भी रखा है घेरा 

बढ़ा कदम दिखा ताक़त तू अपने बुलंद इरादो की

कौन सी है दीवार यहाँ जिसने तुझको रोखे रखा है 

तू अगर चलेगा तो, मंज़िल भी तुझ तक आएगी 

भला बता वो तुझसे कबतक वो दूर रह पाएगी 

उस ओर चलो जहां से रोशनी एक आती है 

तेरे मंज़िल की तुझे एक झलक दिखलाती है 

जो शाम हुई है अभी तो ऊजियारा भी आएगा

बदलो के पीछे तेरा सूरज नहीं छुप पाएगा 

हाँ मगर तुझको भी उड़ना है ऊपर बादल के 

जैसे उड़ जाता है बाज साथ अपने हिम्मत के 

रात नहीं होती है बस सॉकर खोने के लिए 

ये मौका है तेरा साबर ना खोने के लिए 

खींच कर ला सकता है तू , अपने हिस्से का सूरज भी 

आग होती नहीं बस जल कर बुझ जाने के लिए 

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

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