For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

यह धर्म युद्ध है

रण भूमी में अस्त्र को त्यागे अर्जुन निःस्तब्ध सा खडा हुआ 

बेसुध सा निःसहाय सा केशव के चरणों मे पडा हुआ 

कहता था ना लड पायेगा, वार एक ना कर पायेगा 

शत्रु का है भेष भले पर वो अपना है जो अडा हुआ 

कैसे मैं उनपर प्रहार करूँ, जिनका मैं इतना सम्मान करूँ 

वे अनुज है मेरे, अग्रज भी हैं, उनपर कैसे मैं आघात करूँ 

वहाँ प्राण प्रिये पितामह हैं और क्रूर सही पर मामा है

है पथ से भटके भ्रात मेरे भले आततायी का जामा है 

है मात प्रिये वो चाची घर पर कैसे उनका आँचल सूना कर दूँ 

हाँ प्रण लिया पर कैसे मैं रक्त रंजित वो झोली कर दूँ 

गुरु ड्रोण वहाँ कृपाचार्य वहाँ मेरा पुरा समुदाय वहाँ 

जिससे सिखा है धनुष कला, है सब के सब प्रत्यक्ष वहाँ 

हे केशव मैं का कर पाऊँग़ा अपनो से ना लड पाऊँगा

कुछ भूमी और कुछ अहम के बदले यह नाश नहीं कर पाऊँगा 

है बस काल का दोष सभी इसमे उनका कुछ दोष नहीं 

हम भी विवेक जो खो बैठे फिर कौन गलत और कौन सही 

कैसे यह अस्त्र उठाऊँ मैं अच्छा हो निर्बल हो जाऊँ मैं 

अपनो को अपने हाथों से मारूँ तो क्या ही हासिल कर पाऊँ मैं 

सुनकर अर्जुन के विलाप सभी केशव मंद मुस्काते हैं 

रख कंधे पर हाथ फिर वे पार्थ को चरण से उठाते हैं 

है चारों ओर हाहाकार मचा, पर अर्जुंकुच ना सुन पाता

कितने मरते कितने गिरते, वो कुछ भी देख अनहीं पाता

छोड कर अपने अस्ते सभी अर्जुन रथ से था उतर गया 

सोच कर अपनों की संहार की बात वो पूरी तरह से बिखर गया 

केशव की ओर वो बढता जाये नयनों मे अश्रु धार लिये 

अपने कंधे पर अपनों के वध का अपराध बोध का भार लिये 

रोए बिलके विलाप करे वो जैसे कि कोई बालक है 

केशव ऐसे  देखें उसको, जैसे वे उसके पालक हैं 

देखकर उसकी करूण अवस्था केशव उसको समझाते हैं 

युद्ध भूमी मे क्षत्रिय के धर्म का ज्ञान उसे सुनाते हैं 

एक एक कर फिर अत्याचार के हर घटना को वे दोहराते हैं 

क्युँ युद्ध ही अंतिम हल है अर्जुन को बतलाते हैं 

फिर भी जब अर्जुन ना समझा हठधर्मी पर अडा रहा 

केशव का सुझाव नकार कर कायर बनकर खडा रहा 

तब केशव ने मित्रता त्याग कर गुरु भेष था धार लिया 

और पार्थ की आत्मग्लानी पर खुल कर फिर प्रहार किया

हे अर्जुन गांडीव उठाओ, शत्रु का संहार करो

धर्म युद्ध मे पर अपर का, ना कोई विचार करो

रण भूमि में युद्ध करना हीं, क्षत्रिय का मात्र कर्म है

अपने कर्म से मुख मोडे तो, शास्त्र में यह होता अधर्म है

 

और फिर ये तो धर्म युद्ध है, इसके पालन को तू प्रतिबद्ध है

तो क्या, स्वयं पितामह आए?  शत्रु वध हीं तेरा कर्म है

वीर कभी भी रण भूमि मे, भाव विभोर नहीं हो सकता है

क्षत्रिय अपने लक्षित पथ से,  कभी भ्रमित नहीं हो सकता है

 

मोह भंग ना हो पाए तो, चौसर के छल को याद करो

क्या रही भूमिका इनकी, उसका भी तुम ध्यान धरो

ये मत भूलो उन पाषाणों में, ये पुतला भी खड़ा रहा

राज धर्म की चादर ओढ़े, मुक बाधिर दर्शक बना रहा

 

कहाँ थी इनकी करुणा उस दिन, जब कुलवधू का अपमान हुआ

भरी सभा में उस नारी का, चीर हरण, भंग मान हुआ

तुम ना समझो पितामह इसको, जिनहोंने तुमको पाला है

ये है तेरे कुटुंब का दोषी, इसके कर्म में विष का प्याला है

 

देखो ये वही गुरु द्रोण है, जिसने विद्या तुमको सौंपी थी

कभी ना अपने धर्म से भटको, तुमसे ये शपथ ली थी

कहो की मन में संशय है क्या? कैसा ये अँधियारा है

कृष्ण तुम्हारे साथ खड़ा है, सदैव सखा तुम्हारा है

याद करो तुम कैसे सबने, उस वीर पुत्र को घेरा था

सात तह थे, एक लक्ष्य था, बर्छी भालों से मारा था

ये वही है भद्र पुरुष जो, तर्क शास्त्र की देते है

लेकिन निहत्थे बालक को, ये एक शस्त्र ना देते है

ये कैसी थी  नीति उनकी, जिसमे युद्ध नीति का नाम नहीं

ग्यारह योद्धा एक को मारे, ये वीरो का काम नहीं

तुम भी अब मोह को तज कर, इन सबका संहार करो

काल के मुख में डाल कर इनको, इन सबका विचार करो

देखो कर्ण सम्मुख खड़ा है, तुमको है ललकार रहा

अपने बान धनुष से देखो, कैसे तुमको साध रहा

ठहरो तनिक ना धैर्य गवाओ, चिंता छोड़ो चिंतन अपनाओ

इसको अगर परास्त है करना, तो इसको है निरथ करना

 

है इसको अभिशाप तुम मानो, धरती का इसपर कर्ज है जानों

जब शत्रु से घीर जायेगा , ये अपनी विद्या गवाएगा

पहला बाण बेसुध हो खा लो, फिर निशाना पहिये पर डालो

जो धासा पहिया उठाएगा, खुद नि:सहाय हो जाएगा

 

लेकिन जो तुम पथ से भटके, बाण तुम्हारे धनुष में अटके

तू फिर कायर कहलाएगा, तू फिर कायर कहलाएगा

तु भी फिर परलोक मे जाकर, ये दाग धो ना पाएगा

अपने कुल की शाख मिटायेगा, ये बोझ ऊठा ना पायेगा

 

अंत सभी का आना है एक दिन, कोई जीवित ना रहता चिरदिन

जिसने जैसा आरंभ किया है, निश्चित है वैसा अंत हीं पाएगा

एक दिन ऐसा भी आयेगा, तु निरुत्तर हो जायेगा

जो आज क्षत्रिय धर्म ना निभायेगा,  तो मोक्ष कहाँ तु पायेगा? 

"मौलिक व अप्रकाशित"

अमन सिन्हा 

Views: 76

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 2, 2024 at 2:08pm

आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय "
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी रचना का संशोधित स्वरूप सुगढ़ है, आदरणीय अखिलेश भाईजी.  अलबत्ता, घुस पैठ किये फिर बस…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, आपकी प्रस्तुतियों से आयोजन के चित्रों का मर्म तार्किक रूप से उभर आता…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"//न के स्थान पर ना के प्रयोग त्याग दें तो बेहतर होगा//  आदरणीय अशोक भाईजी, यह एक ऐसा तर्क है…"
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, आपकी रचना का स्वागत है.  आपकी रचना की पंक्तियों पर आदरणीय अशोक…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी प्रस्तुति का स्वागत है. प्रवास पर हूँ, अतः आपकी रचना पर आने में विलम्ब…"
22 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद    [ संशोधित  रचना ] +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  रचना को समय देने और प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार ।"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। चित्रानुसार सुंदर छंद हुए हैं और चुनाव के साथ घुसपैठ की समस्या पर…"
23 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी चुनाव का अवसर है और बूथ के सामने कतार लगी है मानकर आपने सुंदर रचना की…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी हार्दिक धन्यवाद , छंद की प्रशंसा और सुझाव के लिए। वाक्य विन्यास और गेयता की…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service