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यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है(७८)

(1212 1122 1212  22 /112 )

यक़ीं के साथ तेरा सब्र इम्तिहाँ पर है

हयात जैसे बशर लग रही सिनाँ पर है

**

हमारा मुल्क परेशान और ख़ौफ़ में है

सुकून-ओ-चैन की अब जुस्तजू यहाँ पर है

**

वजूद अपना बचाने में अब लगा है बशर

न जाने आज ख़ुदा छुप गया कहाँ पर है

**

बचेगा क़ह्र से कोविड के आज कैसे भला 

बशर पे ज़ुल्म-ओ-सितम उसका आसमाँ पर है

**

वहाँ की प्यास भला दूर क्या करे कोई

शिकार-ए-तिश्नगी ख़ुद आबजू जहाँ पर है

**

बिछड़ के लौट गया हूँ पनाह दे कि न दे

ये फ़ैसला तो नए मीर-ए-कारवाँ पर है

**

उठा रहे हैं कई लोग मसअला-ए-जुबाँ

मुझे तो नाज़ वतन की हर इक जुबाँ पर है

**

खिला सका न शजर फूल जो बहारों में

ख़िज़ाँ में दे रहा इलज़ाम बाग़बाँ पर है

**

'तुरंत' ज़िंदगी के गर ग़मों की बात करूँ

फ़साना भारी मिरा सब की दास्ताँ पर है

**

गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 3, 2020 at 11:44am

हार्दिक आभार  Salik Ganvir जी 

Comment by सालिक गणवीर on April 3, 2020 at 10:46am
भाई गहलोत जी.
एक और अच्छी ग़ज़ल पोस्ट करने के हार्दिक बधाइयाँ स्वीकारें
Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 9:10pm

यहाँ सवाल इज़ाफ़त का है,और इज़ाफ़त का नियम ये है कि हिन्दी और अंग्रेज़ी शब्दों में नहीं लगाई जा सकती ।

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 2, 2020 at 8:59pm

आदरणीय Samar kabeer साहेब , मेरे जिज्ञासा है कि  , व्यक्तिवाचक संज्ञा ,जातिवाचक संज्ञा जिनके नामों में किसी भी भाषा में परिवर्तन न हो पाए , जैसे कोरोना ,कोविड ,कंप्यूटर , ट्रम्प , इमरान खान , प्लेटफार्म , स्टेशन , मोबाईल आदि का प्रयोग उर्दू में भी यदि मूल नाम से ही प्रयोग हों  , तो क्या उन्हें उर्दू में सम्मिलित नए शब्द नहीं माना जाएगा ? सादर | 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 8:12pm

"कोविड" शब्द उर्दू का कैसे हुआ?

Comment by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on April 2, 2020 at 8:04pm

आपकी क़ीमती दाद मेरे लिए वाइस-ए-फ़ख्र है मोहतरम Samar kabeer  साहेब | नवाज़िश-ओ-करम का दिल से शुक्रिया | मेरे ख़याल से संज्ञा शब्द तो हर भाषा में ज्यों के त्यों प्रयोग होते हैं , इसलिए मैंने कोविड को उर्दू शब्द मान लिया है | यदि इस बारे में भी कठोर नियम है तो क्षमा चाहता हूँ , गलती हो गई | 

Comment by Samar kabeer on April 2, 2020 at 3:55pm
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'बचेगा कैसे भला कोई क़ह्र-ए-कोविड से'
इस मिसरे में इज़ाफ़त का इस्तेमाल उचित नहीं,देखियेगा ।

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