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(१)

मेरा दिल वो मेरी धड़कन,
उसपे कुरबां मेरा जीवन !

मेरी दौलत मेरी चाहत

ऐ सखी साजन ? न सखी भारत !

---------------------------------------

(२)

अंग अंग में मस्ती भर दे

आलिम को दीवाना कर दे

महका देता है वो तन मन 

ऐ सखी साजन ? न सखी यौवन  !

---------------------------------------

(३)

मिले न गर, दुनिया रुक जाए

मिले तो जियरा खूब जलाए ! 

हो कैसा भी - है अनमोल,

ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !

-------------------------------------------

(४)
कर गुज़रे जो दिल में ठाने,
नर नारी उसके दीवाने !
वो इतिहास का सुंदर पन्ना 
ऐ सखी साजन ? न सखी अन्ना !
----------------------------------------

 (५)

हरिक बेचैनी का सबब है,
उसे किसी की चिंता कब है ?
दुनिया भर के दर्द है देता
ऐ सखी साजन ? न सखी नेता !

---------------------------------------

 

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Comment

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Comment by Kailash C Sharma on September 23, 2011 at 8:39pm

बहुत सुन्दर ...इस तरह की मुकरियां बचपन में पढीं थीं, आज फिर याद ताजा होगयी. समसामयिक समस्याओं से इसे जोडने का प्रयास बहुत अच्छा लगा..आभार 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 23, 2011 at 2:22pm

वीनस भाई, आपने मेरी इस अदना सी कोशिश को सराहा - दिल से धन्यवाद !


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 23, 2011 at 2:21pm

भाई धर्मेद्र कुमार सिंह जी, आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत मायने रखती है ! उत्साहवर्धन के लिए दिल से शुक्रिया ! 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 23, 2011 at 2:14pm

//ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !   अय-हय, अय-हय !!

इस सोच को मेरी विशेष बधाइयाँ. .. :-))//

 

अय हय हय हय हय !!! इतनी  मोहब्बत से लबरेज़ आपकी टिप्पणी के लिए !!!!

 

Comment by वीनस केसरी on September 23, 2011 at 2:20am

मैंने बहुत बहुत बहुत पहले कुछ कह मुकरियाँ अपने परिवार में किसी से सुनी थी, इक धुंधली सी याद भर बची है,, बहुत याद करने पर भी कोई याद नहीं आई |

 

योगराज जी,
खूब समझ आता है कि यह छंद पढ़ने/सुनने में जितना आनंदमयी है लिखने में उतनी ही कठिन और दुरूह है

इसे हम सभी से साझा करने के लिए बधाई व आभार

Comment by satish mapatpuri on September 22, 2011 at 7:51pm

सभी कह्मुकरी स्तरीय एवं बेहतरीन है. लुप्त प्राय होती इस साहित्य - विधा को सामने लाकर आपने एक महती कार्य किया है आदरणीय ........... लख - लख बधाई

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 22, 2011 at 3:22pm

बहुत बहुत बधाई योगराज जी, इतिहास रच रहा है ओबीओ, इसमें कोई संदेह नहीं


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 22, 2011 at 1:45pm

 

ऐ सखी साजन ? न सखी पट्रोल !   अय-हय, अय-हय !!

इस सोच को मेरी विशेष बधाइयाँ. .. :-))

सादर.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on September 22, 2011 at 12:02pm

आदरणीय सौरभ भाई जी, मैंने इस विधा में बिना विषय को बोझिल किये आज की बात कहने का प्रयास किया है ! आपने मेरे प्रयास को मान दिया, आपका ह्रदय से आभारी हूँ !   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 22, 2011 at 11:52am

आदरणीय योगराजभाईसाहब, चूँकि हम अपने दौर के हिस्से हुआ करते हैं अतः, समसामयिक विषयों पर कुछ कहना सदा से कठिन हुआ करता है. कुछ भी कहा हुआ या तो सतहीपन और् भाषणबाजी की भेंट चढ़ जाता है या फिर, ’हम जानते हैं’ की दार्शनिकता इतनी हावी हो जाती है कि पढते ही ऊब होने लगती है. परन्तु, आपकी लेखिनी को सादर नमन कि ’कह-मुकरियों’ के शिल्प में आपने वर्त्तमान को मुखर किया है. देश, देश की समस्याओं आदि को आपने इन पाँच ’कह-मुकरियों’ में आपने की सफल कोशिश की है.

आभार.

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