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चलिये शाश्वत गंगा की खोज करें- तृतीय खंड (2)

तृतीय  खंड 

पाठक के लिए: 

हमारे काव्य नायक 'ज्ञानी' की पर्वचन  श्रृंखला  जारी है। ज्ञानी का लक्ष्य मानवीय अनुभूति से उपजे ज्ञान को जन मानस तक पहुँचाना। प्रस्तुत खंड में वह गंगा उत्पुति की कथा बयान कर रहा है। गंगा की उत्पुति विष्णु हृदय से मानी जाती है। वह विष्णु हृदय क्या है - ज्ञानी इस की विवेचना के लिए प्रयतन रत है।
प्रस्तुत कथा और इस का ऐसा पठन शायद किसी और ग्रन्थ में न उपलब्ध हो इस लिए पाठक से निवेदन  है  कि वह इस में समानांतर धार्मिक कथा की खोज न करे। प्रस्तुत कथा केवल ज्ञानी की अपनी आत्मानुभूति है  .... (डॉ स्वर्ण जे ओमकार 

ज्ञानी का तीसरा प्रवचन (2)

मन ने माना ‘मैं’ को इकाई
चेतना ने कहा नहीं
‘मैं’ है पूर्ण सच्चाई
मन ने माना ‘मैं’ है एक खण्ड
चेतना ने कहा नहीं
‘मैं’ है ‘ब्रहमण्ड’

गतांक से आगे...


2
चेतना और मन के बीच झूलता रहता है मानव
लेकिन आश्चर्य की खिड़कियां खेालता रहता है मानव
‘ब्रहमण्ड’ के रहस्य खोजता रहता है मानव
‘ब्रहमण्ड’ के रहस्य खोलता रहता है मानव

उसकी चेतना से उपजा है ‘विद्’
‘जानना’ चेतना का स्वभाव
‘विद’ से उपजीं स्मस्त विद्यायें
और विद्या से बना स्मस्त ज्ञान
ज्ञान व स्मृति ने बनाई बुद्धि
बुद्धि ने बनाया विवेकवान

ज्ञान ने जब किया विस्तार
बनाये वेदों के संग्रह
वेद जो कभी न स्माप्त होते
वेदों का कभी अंत न होता

नवयुग की जो महाविद्याएं
भौतिकी, रसायण या जैविक शाष्त्र
सब में वेदों का विस्तार
सब का हैं वेद आधार

ज्ञान ने बनाया मानव को विद्वान
जैसे जैसे ज्ञान बढ़ा तो
उसी ज्ञान ने किया हैरान
मानव बना खोजी महान्
सब से अलग बुद्धिमान


मानव ने खोजा कि
‘ब्रहमण्ड’ का जो संपूर्ण सत्य है
‘ब्रहमण्ड’ का है वह सूक्ष्म कण
ऐटम कहो या मालिक्यूल
अणु है ब्रहमण्ड का मूल

‘ब्रहमण्ड’ का जो छोटा अणु
वही है प्रकृति का रहस्य
वही है प्रकृति का सत्य
मानव ने उसे कहा विश्व का अणु
नाम दिया ‘विष्णु’

(शेष बाकी)

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on April 5, 2013 at 9:47pm

बहुत सुंदर ।आपकी वैचारिक कल्पना के लिए बधाई |

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 5, 2013 at 9:03pm

सुन्दर परिकल्पनाएं.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 5, 2013 at 7:35pm

खोजी मानव ने खोजा है ब्रह्मांड का सत्य, खोज, अनुसंधान, आविष्कार निरंतर जारी है, पहले से है आगे भी रहने है | किन्तु 

जैस आपने कहा-नवयुग की जो महाविद्याएं,भौतिकी, रसायण या जैविक शाष्त्र
सब में वेदों का विस्तार, सब का हैं वेद आधार- तो वेदों के रचयिता को हम क्या माने, इस प्रकृति में सब 

कुछ किसी न किसी आधार पर, किसी नियता या रचयिता पर, या खे सुक्ष्तम अणु पर टिकी है | अणु तो 

विष्णु या नारायण समझे यह मानव की कल्पना ही तो है | आपकी वैचारिक कल्पना के लिए बधाई |

Comment by राजेश 'मृदु' on April 5, 2013 at 6:27pm

बहुत सुंदर । विष्‍णु का अर्थ मैंनें पहली बार जाना जिसके लिए आपका आभार । जरा हट के एक जिज्ञासा कि क्‍या अणु और मालीक्‍यूल अलग नहीं हैं । बहुत दिन हो गए विज्ञान पढ़े इसलिए गडबड़ा रहा हूं । दूसरे,मानव अणु से भी आगे जा चुका है, विज्ञान की पृष्‍ठभूमि वाले इसे जानते हैं, सादर

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