For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मुहब्बत में हमीं मुजरिम हैं हम ये मान लेते हैं
चलो अब तुम कहो तुमसे तुम्हारी जान लेते हैं

ज़रा हम भी तो देखें धार उन क़ातिल निगाहों की
सुना है वो इसी ख़ंजर से सबकी जान लेते हैं

जो फिर देखो उन्हें तो वो जुदा लगते हैं पहले से
कहें कैसे कि हम उनको सही पहचान लेते हैं

कभी गुस्सा कभी आँसू कभी फिर रूठना उनका
वो कितने इम्तिहाँ मुझसे मेरे भगवान लेते हैं

तो फिर दुनिया क्या इस दुनिया का रखवाला भी झुकता है
मुहब्बत करने वाले भी अगर ज़िद ठान लेते हैं

जो दिल देते हो तुम हमको तो फिर ये जान हाज़िर है
भला यूँ ही किसी का हम कहाँ अहसान लेते हैं

फ़क़त इक पल की ख़ातिर उनकी आँखों से लड़ीं आँखें
बस इतनी बात पर अब वो मेरा ईमान लेते हैं


मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 943

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Alok Rawat on July 11, 2018 at 11:42am

आदरणीय दादा गोपालजी, सादर प्रणाम , आप ठीक कहते हैं | आप सदैव मेरे शुभचिंतक रहे हैं | ओ बी ओ में ये मेरी दूसरी ग़ज़ल है | पहली ग़ज़ल में मुझे आदरणीय समर कबीर साहब का और अन्य लोगों का उचित मार्गदर्शन प्राप्त हुआ था | मेरी दृष्टि में सीखने के लिए इस मंच से बेहतर दूसरा और कोई मंच नहीं है | बड़े प्यार,स्नेह और विनम्रता के साथ इस्लाह दी जाती है | मैं अपनी सक्रियता बनाये रखूंगा | कोशिश करूँगा की और बेहतर कह सकूं |

Comment by Alok Rawat on July 11, 2018 at 11:35am

आदरणीया नीलम जी आपका बहुत बहुत आभार

Comment by Alok Rawat on July 11, 2018 at 11:34am

आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया, इस्लाह के लिए | आप जैसे गुणीजनों के सान्निध्य में निश्चय ही कुछ सीख सकूंगा | मतले में सिर्फ मुहब्बत में ईमानदारी की बात की है कि मैं अपनी ग़लती स्वीकार करता हूँ लेकिन तुम्हारा अपने बारे में क्या ख्याल है, बस इतनी सी बात है | बाक़ी "रूठने" की जगह "नाराज़गी " की सलाह सर आँखों पर | मैंने अपने हिसाब से "रूठना " का इस्तेमाल किया | ग़ज़ल की बहर "मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन" है | आगे से ध्यान रखूँगा |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 10, 2018 at 6:58pm

प्रिय अलोक 

मंच पर आपकी गजल देखकर बड़ा सुकून हुआ . यहाँ  बहुत  कुछ सीखने को मिलता है . अपनी कमियां  खुद को अक्सर नजर नही आती पर यह मंच आपको अवश्य टोकेगा  जैसे मतले के बारे में कहा  गया कि शायद दोनों पंक्तियों में राब्ते की कमी  है . जो लोग स्वय को सिद्ध मान  बैठे हैं,  मैं उनकी बात नही करता पर आप में सीखने की ललक भी  है और वह  विनम्रता भी है जो साहित्यकार में होनी चाहिए . इसलिय आप मंच से लगातार जुड़े रहें  यह मेरी इच्छा है . आप मेरे अनुज है मुझे तो आपकी सारी  ही रचनायें अच्छी लगती है और गजल तो मैं भी सीख  ही रहा हूँ . अभी  आ० समर कबीर साहिब की निगाह नही पड़ी  वह  बहुत अच्छा मार्गदर्शन करते है . यह गजल  मैं आपके मुख से  सस्वर  सुन चुका हूँ . मंच के सदस्य आपके स्वर के जादू से अभी परिचित नही है ,वरना  वे आपके कायल अवश्य हो जाते . स्नेह . 

Comment by Neelam Upadhyaya on July 10, 2018 at 4:04pm

आदरणीय अलोक रावत जी, नमस्कार । बहुत बढ़िया ग़ज़ल की पेशकश।  दिल से मुबारकबाद।

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 10, 2018 at 3:59pm

आदरणीय आलोक रावत जी , नमस्कार , बहुत ही बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने ,इसके लिए बहुत बहुत बधाई आपको। ये शेर तो बेहद पसंद आया
ज़रा हम भी तो देखें धार उन क़ातिल निगाहों की
सुना है वो इसी ख़ंजर से सबकी जान लेते हैं

मंच के नियमों के मुताबिक ग़ज़ल की बह्र लिखना भी ज़रुरी है। ग़ज़ल पढ़ते हुए जो एक दो बातें मन में आईं, वो साझा कर रहा हूँ जी ,


--"कभी गुस्सा कभी आँसू कभी फिर रूठना उनका"-- इस मिसरे को अगर यूँ लिखा जाए तो शायद ज़्यादा सही लगे :-
"कभी गुस्सा कभी आँसू कभी नाराज़गी उनकी "

--मतले में क्या कहा गया है , सही से समझ नहीं पाया

Comment by Alok Rawat on July 10, 2018 at 2:52pm

भाई मोहम्मद आरिफ जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया कोशिश करूँगा कि आगे और भी बेहतर कह सकूं..

Comment by Alok Rawat on July 10, 2018 at 2:49pm

भाई श्याम नारायण वर्मा जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Shyam Narain Verma on July 10, 2018 at 10:16am
बहुत बहुत बधाई आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए सादर ।
Comment by Mohammed Arif on July 9, 2018 at 8:32pm

आदरणीय आलोक रावत जी आदाब,

                                 सबसे पहले ओबीओ साहित्य के लब्धप्रतिष्ठित मंच पर आपका दिली इस्तक़बाल है ।

                                                        बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल । हर शे'र बह्र की कसौटी पर खरा नज़र आ रहा है । शे'र शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे । मंच पर सक्रियता बनाए रखें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
48 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
54 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
57 minutes ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
16 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
19 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service