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'मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था'

मफ़ऊल मफ़ाईल मफ़ाईल फ़ऊलुम

सोई हुई ख़्वाहिश को जगाना ही नहीं था

ख़्वाबों में मेरे आपको आना ही नहीं था

बाग़ी है अगर तुझ से तो अब कैसी शिकायत

औलाद का हक़ तुझको दबाना ही नहीं था

वो होके पशेमान यही बोल रहे हैं

मासूम पे इल्ज़ाम लगाना ही नहीं था

सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे

सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं था

बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे

फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था

समर कबीर

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Naveen Mani Tripathi on March 21, 2018 at 10:17am

आ0 कबीर सर सादर प्रणाम अब मुझे पता चला यह ग़ज़ल भेजकर आप हम लोगों की योग्यता को परखना चाहते थे । बहुत अच्छा लगा सर । जो भी प्राप्त हुआ है हमें वह आप जैसे गुरुओं की कृपा से ही सम्भव हो सका । नमन ।

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 10:09am

जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका शुक्रगुज़ार हूँ ।

Comment by Samar kabeer on March 21, 2018 at 10:06am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई इसके लिए धन्यवाद ।

4थे शैर के ऊला में 'झूट' शब्द सही है,फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि हिन्दी में इसे "झूठ" कहते और लिखते हैं,और उर्दू में "झूट"लिखा और बोला जाता है ।

अब रही मतले की बात,तो इसके लिये आपको इस ग़ज़ल की सभी टिप्पणियों को ध्यान पूर्वक पढ़ना होगा,आपका जवाब उसी में है, वैसे आपका सुझाव देना मुझे अच्छा लगा ।

4थे शैर के सानी मिसरे में 'ज़माना शब्द पुल्लिंग ही है, टंकण त्रुटि की वजह से 'थी' हो गया,अगर पूरी ग़ज़ल आप ध्यान से पढ़ते तो ये प्रश्न नहीं करते,क्योंकि 'था" शब्द तो रदीफ़ का हिस्सा है,यहाँ सिर्फ़ टंकण त्रुटि लिख देना काफ़ी होता ।

Comment by vijay nikore on March 21, 2018 at 9:26am

//सब,झूट यही कह के यहाँ बोल रहे थे

सच बोलने वालों का ज़माना ही नहीं थी

बहरों की ये बस्ती है "समर" जान गये थे

फिर तुमको यहाँ शोर मचाना ही नहीं था//

सारी गज़ल ही दिलकश है, पर इन एहसासों पर खास दाद । बधाई, भाई समर जी।

Comment by Ajay Tiwari on March 21, 2018 at 9:11am

आदरणीय समर साहब,

मुझे पता था कि आपने ये गलती जान बूझकर ही की है. मेरी टिपण्णी का  मकसद भी यही था कि मंच की रचना और आलोचना के बीच ईमानदार, संयत और गरिमापूर्ण संवाद की परंपरा को सामने रखा जाय.

सादर

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 21, 2018 at 1:33am

गलत हो गया सानी ऐसे होगा

अपनी अना को आज झुकाना ही नहीं था ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 21, 2018 at 1:19am

जग और हट हम काफिया नहीं । इसको यूँ किया जा सकता है    सोई हुई ख्वाहिश पे निशाना ही नहीं था ।

मुझको अभी अना को झुकाना ही नहीं था ।।

Comment by Naveen Mani Tripathi on March 21, 2018 at 1:05am

वाह बहुत खूब सर लाजबाब ग़ज़ल हुई है । चौथे शेर में दो जगह आप से ज्ञान चाहता हूँ । सही शब्द झूठ है या झूट दूसरा यह कि जमाना पुलिंग है उसके साथ थी नहीं जम रहा । यह सम्भवतः टाइपिंग त्रुटि है ।

Comment by Samar kabeer on March 20, 2018 at 11:04pm

आप भी तो इसी मंच(परिवार)के हैं भाई,वैसे आप सही फ़रमाते हैं ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 20, 2018 at 10:41pm

आ. समर सर,
आप जिस बात का क्रेडिट मुझे  रहे हैं उस क्रेडिट का असली हक़दार यही मंच है जहाँ से आपके  और अन्य सभी वरिष्ठ मार्गदर्शकों के सानिध्य में थोडा बहुत सीख पाया हूँ...
आभार 

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