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सीढ़ियाँ – लघुकथा -

   सीढ़ियाँ – लघुकथा -

 "सर, यह क्या सुन रही हूँ।आप तो डाइरेक्टर बनने वाले थे।मगर आप को जी एम से डिमोट कर के मैनेजर बना दिया"।

"यह सब तुम्हारी वज़ह से हुआ है लीला", वर्मा जी अपनी सैक्रेटरी पर झल्ला पड़े।

"सर, मैंने क्या किया। मैं तो सदैव वही करती रही  हूं, जो आप कहते रहे हो"।

"पर इस बार नहीं किया ना,मैंने तुम्हें शनिवार को सी एम डी के बंगले पर जाने को कहा था"।

"सर, मैंने सुना था कि नया सी एम डी बहुत खड़ूस है।मैं डर गयी थी।पर आपने मेरी जगह दूसरी लड़की भेज दी थी ना"।

"भेजी थी, पर उसने सब पोल खोल दी । उसे सी एम डी ने भगा दिया। मुझे फोन पर सी एम डी ने कहा,"मि० वर्मा, मैं वह सीढ़ी देखना चाहता था, जिसका इस्तैमाल करके आप एक मामूली सुपरवाइजर से जी एम बने। बाज़ारू लड़की तो मैं खुद भी मंगा सकता हूँ।"।

"अब क्या होगा सर"।

"अब कर्म फल भोगने के लिये तैयार रहो।जैसे सीढ़ियों का उपयोग उन्नति देता है , वैसे ही इनका दुरुपयोग पतन की ओर भी ले जा सकता है"।

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 5, 2017 at 9:50pm

मुहतरम जनाब तेज वीर      साहिब  ,बहुत ही सुंदर लघु कथा हुई   है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ -

Comment by Samar kabeer on February 5, 2017 at 9:50pm
'शैख़ तेजवीर'
तस्दीक़ भाई क्या कह रहे हो भाई,लिखने के बाद पढ़ा भी करो ।
Comment by Samar kabeer on February 5, 2017 at 8:40pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत उम्दा सधी हुई लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
Comment by TEJ VEER SINGH on February 5, 2017 at 7:46pm

हार्दिक आभार आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहब जी।

Comment by Mohammed Arif on February 5, 2017 at 6:40pm
आदरणीय तेजवीर जी, आदाब! बेहतरीन लघुकथा । आजकल काम निकलवाने के लिए सीढ़ियों (साधनों)का ही तो इस्तेमाल किया जा रहि है । बधाई आपको ।

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