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चाय पिला पिला कर ,
लोगो की सेवा वो करता रहा,
महज़ चार चाय की कीमत पर ,
मालिक उसको छलता रहा,
भूखी अंतड़िया ,
क्या जाने चाय की तलब ,
दो रोटियां, चोखे संग,
पाने को पेट जलता रहा ,
बैठे चायखाने मे
खादी पहने
कुछ उच्च शिक्षित लोगों के मध्य
"बाल मजदूरी ठीक नहीं",
यही मुद्दा चलता रहा ,
कैसे रोके , कैसे टोके ,
सरकार अपनी है निकम्मी,
बातो बातो में
राजनीतिक विवादों में
घंटो निकलता रहा,
फिर चाय की तलब लगी,
तो छोटू की पुकार हुई,
एक बार फिर कड़क चाय पिलाना,
चाय पिला कर सारा दिन छोटू,                                                                                             (चित्र गुगल से साभार)
जूठे बर्तन घिसता रहा,

(मैं बहुत बहुत आभारी हू भाई श्री राणा प्रताप जी का जिनके सहयोग से मैं यह कविता लिख सका हू|)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on June 12, 2010 at 6:04pm
सभी मित्रों को स्पष्ट करना चाहूँगा कि इस कविता को लिखने में मेरा शून्य से भी कम योगदान है.जो भी विचार एवं विन्यास है सब श्री गणेश जी "बागी" भैया के ही हैं. यह तो उनका बड़प्पन है कि उन्होंने मेरा नाम यहाँ पर लिख दिया है.......
Comment by sunil pandey on June 12, 2010 at 5:41pm
bahut bandhiya sir. ek dam heart touching our samaj ki sachai batane wali kavita hai ye..
Comment by Biresh kumar on June 12, 2010 at 4:59pm
लोगो की सेवा वो करता रहा,
महज़ चार चाय की कीमत पर ,
kia baat kia baat

kiaa baat
i cant comment in words this poem is like....

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 12, 2010 at 4:42pm
Mainey sudharney ka paryash kiya hai Sampadak jee, Dekh lijiyeyga,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 12, 2010 at 4:21pm
बाग़ी भाई, राणा जी के हाथ से होकर निकली आपकी यह कविता बहुत सुंदर है ! आपने बडे मर्मस्पर्शी ढंग से बात कही है और साथ ही हमारे समाज की असंवेदनशीलता को भी इस कविता के माध्यम से बखूबी उजागर किया है, जिसके लिए आप बधाई के पात्र हैं ! लेकिन सब से आखरी पंक्ति पर एक बार दोबारा नजर डालिए:
//जूठे बर्तन धुलता रहा,//
यह व्याकरण की दृष्टि से सही नहीं है !
Comment by Chhavi Chaurasia on June 12, 2010 at 3:38pm
क्या बात है गणेश जी, छोटू के हालत पर बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने. ओपन बुक्स पर ऐसी रचना लिखने के लिए धन्यवाद .
Comment by guddo dadi on June 12, 2010 at 3:38pm
बच्चे कल के माता पिता नेता चाचा नेहरु के दुलारे ,भूख के मारे
कवि श्यामालसुमन जी की पंक्तियाँ
उदर भरण का कर्म कहें ,या प्राणों का बलिदान कहें
बर्बरता के क्रूर चरण या सांसों का उत्थान कहें
एक मिटे तो दूजा पनपे पाप पुण्य बेमानी है
जिसकी लाठी भैंस उसी की, जग की यही कहानी है

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