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तपे रोज जितना हम और भी निखरते गये (महिला दिवस पर विशेष ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२ २२१ २१२ २१२

हटाये जो  काँटे तो रास्ते सुधरते गये 

दुआएँ समझ कर हम झोलियों में भरते गये

 

कदम दर कदम जिस जिस मोड़ से गुजरते गये  

बने तल्ख़ियों के घर टूटते बिखरते गये

 

खुदा जाने  कैसे किस कांच के बने थे अजब    

 दरकते रहे  पत्थर आईने सँवरते गये   

 

दबाता रहा हमको झूठ आजमाता रहा   

सदा सच पकड़ हम हालात से उबरते गये  

 

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये

खुला आसमां हमको रात दिन बुलाता रहा

सदा होंसले जीते भेद भाव मरते गये

 

चली तंज़  की लातादाद सब हवाएँ  मगर 

नई कोंपलें फूटी पात पात झरते गये 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Meena Pathak on March 8, 2015 at 8:48pm

आप को भी सखी ..बहुत बहुत शुभकामनाएँ


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Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:44pm

प्रिय सखी मीना जी ,सर्वप्रथम महिला दिवस की ढेरों बधाइयां . आपकी इस उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ने दिल बाग़ बाग़ कर दिया .आपका बहुत बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by Meena Pathak on March 8, 2015 at 8:41pm

ज़माना कसौटी पे रात दिन परखता रहा

तपे  रोज जितना हम और भी निखरते गये

 

चुकाई कई कीमत राह  से न लौटे  कदम   

चमकते गए जितना यारों को अखरते गये.............क्या बात है ..........लाजवाब गज़ल हुयी आदरणीया राजेश सखी ..बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:39pm

कृष्णा मिश्रा जी ,आपकी इस उत्साह्वर्धनीय प्रतिक्रिया के सम्मुख नत हूँ तहे दिल से आभार आपका .मेरा लिखना सार्थक हुआ .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:37pm

प्रिय कल्पना जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई तहे दिल से आभार ,तथा महिला दिवस की ढेरों शुभकामनाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:36pm

आ० लक्ष्मण धामी भैय्या ,आपको ग़ज़ल पसंद आई सोच कर बहुत खुश हूँ लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार आपका 


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Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:35pm

हरिप्रकाश दूबे जी,आपकी इस प्रतिक्रिया से दिल गद गद हो उठा लेखन के प्रति आश्वस्त भी हुई कि अशआर अपनी बात रखने में खरे उतर रहे हैं दिल से बहुत- बहुत आभार आपका.  


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Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:32pm

आ० गिरिराज भंडारी जी,आपकी इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया.मेरा लिखना सार्थक हुआ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 8, 2015 at 8:31pm

मिथिलेश जी,आप जैसे रचनाकार से दाद मिलना ही किसी ग़ज़ल  की सार्थकता है ग़ज़ल के अशआर आपको प्रभावित किये मेरा लिखना सफल हुआ हार्दिक आभार 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 8, 2015 at 6:18pm

पूरी गजल ही लाजवाब है,किसे कोट करे' किसे नही!!

मजा आ गया,कई बार पढ़ा!!

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