मेरे सबसे प्रिय रचनाकार
कभी प्रत्यक्ष मिला नहीं आपसे
सपना है मेरा ,
आपसे मिलना , बातें करना
घंटों ,
किसी झील के किनारे
सूनसान में
आपकी हर रचनायें
गढती जाती है
मेरे अन्दर आपको
बनती जाती है
आपकी छवि ,
कभी धुंधली , कभी चमक दार , साफ साफ
क़ैद है मेरे दिलो दिमाग़ में
आपकी रचनाओं की सारी खूबियों के साथ
आपकी एक बहुत प्यारी छवि
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी रचनायें बनातीं हैं आपको
मन डरता भी है
कभी कभी
सोचने लगता है
आपकी रचनायें आपके दिल का अनुवाद है या नहीं ?
कहीं दिमागी गुणा भाग ही न हो
शब्दों से अर्थ कमाने की
एक नितांत बाहरी कोशिश मात्र
मन डरता है , मिलने से
ख़्वाब के टूट जाने की आशंकाओं से
क्या आप सच में वैसे ही हैं
जैसी आपकी रचनायें ? ॥
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आ० भाई गिरिराज जी , कविता को पद ऐसा लगा जैसे मेरे मंभावौं को आपने शब्द दे दिए हों .कोटि कोटि नमन ....
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