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" बहुत बहुत बधाई जन्मदिन की, आज तो पार्टी बनती है " , ऑफिस पहुँचते ही सहकर्मियों ने घेर लिया शर्माजी को | एक बारगी तो वो सोच ही नहीं पाये कि कैसे प्रतिक्रिया दें इस पर , उनसठवां जन्मदिन था उनका | अगले साल सेवानिवृत्त हो जायेंगे और घर में बेरोज़गार पुत्र एवम शादी के योग्य पुत्री |
चेहरे पे फीकी मुस्कान लाते हुए सबका आभार व्यक्त करने लगे और आवाज लगायी " सबके लिए नाश्ते का इंतज़ाम आज मेरी तरफ से कर देना भोला " | सब प्रसन्न थे पर उनके मन में यही चल रहा था कि ऐसा जन्मदिन किसी का न हो |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on January 12, 2015 at 3:34pm

आभार मिथिलेश वामनकर जी..

Comment by विनय कुमार on January 12, 2015 at 3:33pm

आभार हरिकिशन ओझा जी..

Comment by विनय कुमार on January 12, 2015 at 3:32pm

आभार सोमेश कुमार जी ..

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 12, 2015 at 12:09pm

पिता.. अंदर से कुछ और , बाहर से कुछ और. बहुत सुंदर लघुकथा, बधाई आदरणीय विनय जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:41am

सफल लघुकथा. हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय जी 

Comment by harikishan ojha on January 11, 2015 at 11:25pm
bahut aacha likha hai
Comment by somesh kumar on January 11, 2015 at 2:49pm

पिता की मनोवेदना और समाजिक-सरोकार निभाने की विवशता को बहुत अच्छे तरीके से दिखाया है |बधाई इस लघुकथा पर 

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