For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"बाबू, बाबू" , बाबा के मुंह अस्पष्ट सी आवाजें निकल रही थीं | वो अब धीरे धीरे अपनी ऑंखें खोलने का प्रयास कर रहे थे | खून अभी भी उनकी कलाईयों में चढ़ रहा था और मैं उनके सिरहाने बैठा उनको सहला रहा था |
मुझे सुबह का घटनाक्रम याद आ गया जिसके चलते उनको चोट लगी थी | मैं उनका लाडला पोता था और मुझे वो हमेशा बाबू ही बुलाते थे | मैं कल ही गांव आया था और आज मुझसे मिलने गांव के कई लोग आ गए | उसी बीच एक दलित लड़का आ कर दरवाजे पर पड़ी खाट पर बैठ गया | बाबा ने कभी भी दलितों को बराबर नहीं समझा था , शायद यह उनकी पीढ़ी की सोच थी | जबकि हम लोग इन चीजों के सख्त विरोधी थे और बाबा को समझाने की असफल चेष्टा करते रहते थे | बाबा का तो गुस्से के मारे बुरा हाल हो गया और उन्होंने उसे दौड़ा लिया | फिर ठोकर लगी और वो बेहोश हो गए | तुरंत उनको हस्पताल ले आया गया वर्ना कुछ भी हो सकता था |
उम्र भी काफी हो गयी थी उनकी और शरीर में रक्त की कमी भी | उन्हें ख़ून की सख्त जरुरत थी और मैं बीमारी की वजह से दे नहीं सकता था | तभी साथ आये गांव के मेरे दलित दोस्त ने आगे बढ़कर अपना खून दे दिया |
बाबा जब होश में आ गए तो मैंने उनको प्यार से बताया कि उनकी धमनियों में फिलवक्त दौड़ रहा खून उसी व्यक्ति का है जिनको उन्होंने कभी भी बराबर नहीं समझा | अब उनके चेहरे पर तमाम भाव आ जा रहे थे | शायद जिंदगी के आखिरी पड़ाव में उनकी सोच को भी नया जीवन मिल रहा था |
मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 445

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by विनय कुमार on January 5, 2015 at 4:38pm

बहुत बहुत आभार शरदिंदु मुख़र्जी जी..

Comment by विनय कुमार on January 5, 2015 at 4:37pm

बहुत बहुत आभार मिथिलेश वामनकर जी..

Comment by विनय कुमार on January 5, 2015 at 4:37pm

बहुत बहुत आभार डॉ गोपाल नारायण जी ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on January 4, 2015 at 8:35pm

आदरणीय विनय जी, रचना विषयवस्तु और विचारों की दृष्टि से प्रशंसनीय है. शुभकामनाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2015 at 7:22pm
आदरणीय विनय कुमार सिंह जी सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 4, 2015 at 6:52pm

विनय जी

आपने  विषय का चुनाव बहुत अच्छा किया है i  कथा  प्रभावित करती है i

Comment by विनय कुमार on January 4, 2015 at 4:12pm

बहुत बहुत आभार Hari Prakash Dubeyji..

Comment by Hari Prakash Dubey on January 4, 2015 at 3:08pm

शायद जिंदगी के आखिरी पड़ाव में उनकी सोच को भी नया जीवन मिल रहा था |....बढ़िया प्रयास , इस रचना  के लिए हार्दिक बधाई , विनय जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, किसी को किसी के प्रति कोई दुराग्रह नहीं है. दुराग्रह छोड़िए, दुराव तक नहीं…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"अपने आपको विकट परिस्थितियों में ढाल कर आत्म मंथन के लिए सुप्रेरित करती इस गजल के लिए जितनी बार दाद…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, अवश्य इस बार चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के लिए कुछ कहने की कोशिश करूँगा।"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"शिज्जू भाई, आप चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के आयोजन में शिरकत कीजिए. इस माह का छंद दोहा ही होने वाला…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब "
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,आप हमेशा वहीँ ऊँगली रखते हैं जहाँ मैं आपसे अपेक्षा करता हूँ.ग़ज़ल तक आने, पढने और…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. लक्ष्मण धामी जी,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..दो तीन सुझाव हैं,.वह सियासत भी कभी निश्छल रही है.लाख…"
4 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई स्वीकार करें ..सही को मैं तो सही लेना और पढना…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर बागपतवी साहिब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, सादर बधाई"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय सौरभ सर, हार्दिक आभार, मेरा लहजा ग़जलों वाला है, इसके अतिरिक्त मैं दौहा ही ठीक-ठाक पढ़ लिख…"
5 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
7 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
7 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service