बह्र : हज़ज़ मुसम्मन सालिम
मुलायम फूल सा हो दिल या दरपन टूट जाता है,
सदा संदेह से बरसों का बंधन टूट जाता है,
जमीं जब रार बोती है सगे दो भाइयों में तो,
मधुर संबंध आपस का पुरातन टूट जाता है,
तुम्हारी याद में मैया मैं जब आंसू बहाता हूँ,
दिवारें सील जाती हैं कि आँगन टूट जाता है,
पृथक प्रारब्ध ने हमको किया है जानता हूँ पर,
विरह की वेदना में जूझके मन टूट जाता है,
झड़ी नैनों की लगती है तो सावन टूट जाता है,
समस्याओं से होता है नहीं विचलित कभी लेकिन,
क्षुधा औ प्यास बढ़ती है तो निर्धन टूट जाता है,
खड़ा रणक्षेत्र में बेहद भले हो शत्रु बलशाली,
समझदारी व साहस हो तो दुश्मन टूट जाता है.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
एक कामयाब और अनुभवों से भरी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय
समस्याओं से होता है नहीं विचलित कभी लेकिन,
क्षुधा औ प्यास बढ़ती है तो निर्धन टूट जाता है,
खड़ा रणक्षेत्र में बेहद भले हो शत्रु बलशाली,
समझदारी व साहस हो तो दुश्मन टूट जाता है.
बहुत सुन्दर गजल ,हार्दिक बधाई
आदरणीय निलेश भाई जी आपका हार्दिक आभार ग़ज़ल पर समय देने हेतु एवं सराहना हेतु.
मेरे निम्न ज्ञान के अनुरूप क्षुधा का अर्थ भूख से होता है कदाचित मैं गलत हूँ. इस अशआर में मैं गरीब की भूख और प्यास की बात कर रहा हूँ जोकि आप भली भांति समझते हैं.
आदरणीय शिज्जु भाई जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल आपको पसंद आई सफल हुई.
आदरणीया राजेश माँ जी हृदयतल से बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर आपका आशीष प्राप्त हुआ ग़ज़ल सफल हुई.
आदरणीय आशुतोष सर प्रत्येक अशआरों पर समीक्षात्मक टिपण्णी हेतु बहुत बहुत आभार स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरनीय अरुण अननत भाई , हर शे र जीवन की एक एक सच्चाई बयान कर रहा है ॥ पूरी गज़ल बहुत सुन्दर हुई है । बधाइयाँ ॥
आदरणीया गीतिका जी हार्दिक आभार आपका ग़ज़ल पर समय देने हेतु, आदरणीया जब मैंने यह शे'र लिखा था तो मेरे दिमाग में केवल यही एक बात थी.
जब मैं माँ की यादों में फूट-२ कर रोता हूँ तो मेरे आसुओं से दीवारों में सीलन आ जाती और मेरी सिसक को सुनकर वह आँगन जो माँ से ही सम्पूर्ण होता है, तुलसी एवं फूलों के अनेक रंगों से हरा भरा रहता था आज सूखा हुआ है वह टूट जाता है. टूटने का अर्थ यहाँ तोड़ फोड़ से नहीं है. आशा मैं अपनी बात आप तक पहुंचा पाया हूँ.
आदरणीय गुरुदेव श्री हृदयतल से हार्दिक आभार आपका आपके ही आशीष का फल है जो कुछ भी आज लिख पा रहा हूँ. आशीष एवं स्नेह यूँ ही बनाये रखिये
आदरणीय गोपाल सर बहुत बहुत शुक्रिया
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