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वज्न ~ 1222 1222 122

शिकायत है, नही कुछ भी जियादा

मुहब्बत है, नही कुछ भी जियादा

.

करे वह वार मुझ पे पीठ पीछे

अदावत है, नही कुछ भी जियादा

.

बदलते रंग क्यों गिरगिट के जैसे

ये आदत  है, नही कुछ भी जियादा

.

अलग हैं कायदे सबके लिए क्यों

सियासत है, नही कुछ भी जियादा

.

कहीं बेजां अमीरी, कोई फाके

खिलाफत है, नही कुछ भी जियादा

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Meena Pathak on June 23, 2014 at 7:38am

करे वह वार मुझ पे पीठ पीछे

अदावत है, नही कुछ भी जियादा.............बहुत सुन्दर  गज़ल .. बधाई | सस्नेह 

Comment by MAHIMA SHREE on June 22, 2014 at 6:56pm

क्या बात है आदरणीया वेदिका जी .. बेहतरीन ग़ज़ल हुयी है ..आनंद आ गया.. बहुत बढ़िया दाद कुबूल करें सस्नेह 

Comment by Abhinav Arun on June 22, 2014 at 6:46pm
वाह बढ़िया ग़ज़ल , पसंद आई , हार्दिक मुबारकबाद आपको आदरणीया गीतिका जी !

अलग हैं कायदे सबके लिए क्यों

सियासत है, नही कुछ भी जियादा

क्या कहने वाह !!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 22, 2014 at 1:25pm

वेदिका जी

इतने लम्बे  रदीफ़ पर आपने गजल का अच्छा निर्वाह किया है i मक्ता सुन्दर बन पड़ा है i

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