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चंद यादें ग़ज़ल बन किताबों में हैं

212  212  212  212

चंद यादें ग़ज़ल बन किताबों में हैं

हसरतें तेरी ही इन निगाहों में हैं

 

कुर्बतें वो तबस्सुम तेरी शोखियाँ

बस यही साअतें मेरी यादों में हैं

 

अपने आँचल से तूने हवा दी जिन्हें

वो शरारे हरिक सिम्त राहों में हैं

 

जो सिवा अपने सोचें किसी और की

अज़्मतें इतनी क्या हुक्मरानों में हैं

 

कुछ खबर ले कोई आके इनकी ज़रा

कितनी बेचैनियाँ ग़म के मारों में हैं

 

साअत= क्षण, पल, लम्हा

अज़्मत= महानता

(मौलिक व अप्रकाशित)

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 7, 2014 at 10:58am

सुन्दर ग़ज़ल हुई है शिज्जू जी 

हार्दिक बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 6, 2014 at 12:34am

एक अच्छी कोशिश के लिए दिल से दाद कुबूल कीजिये भाई शिज्जूजी ..

शुभ-शुभ


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 4, 2014 at 10:55am

आदरणीया मीना जी आदरणीय बृजेश जी भाई रमेश जी मेरी रचना को सराहने के लिये आप सभी का आभार व्यक्त करता हू

Comment by रमेश कुमार चौहान on February 3, 2014 at 9:03pm

शिज्जू भैयाजी, बेहतरीन गजल कही है आप ने बधाई

Comment by बृजेश नीरज on February 3, 2014 at 7:13pm

वाह! बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Meena Pathak on February 3, 2014 at 2:42pm

क्या बात है .. बहुत सुन्दर गज़ल हुई आदरणीय शिज्जू जी .. बधाई स्वीकारें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 2, 2014 at 11:01pm

आदरणीया कुन्ती जी आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 2, 2014 at 11:01pm

आदरणीय गिरिराज सर आपकी रचना पर उपस्थिति उत्साह से भर देती है आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 2, 2014 at 10:59pm

भाई जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by coontee mukerji on February 2, 2014 at 3:19pm

 

कुछ खबर ले कोई आके इनकी ज़रा

कितनी बेचैनियाँ ग़म के मारों में हैं..........बहुत खूब.

कृपया ध्यान दे...

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