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अनंग शॆखर छन्द =
===============
कभी डरॆ नहीं कभी मरॆ नहीं सपूत वॊ, प्रचंड  वृष्टि बर्फ और ताप मॆं खड़ॆ रहॆ ॥

हिमाद्रि-तुंग बैठ शीत संग तंग हाल मॆं, सपूत एकता अखण्डता लियॆ अड़ॆ रहॆ ॥
प्रहार रॊज झॆलतॆ अशांति कॆ कुचाल कॆ, सदा निशंक काल-भाल वक्ष पै चढ़ॆ रहॆ ॥
अखंड भारती सुहासिनीं सुभाषिणीं कहॆ, सभी अघॊष युद्ध वीर शान सॆ लड़ॆ रहॆ ॥

 

 
कवि-"राज बुन्दॆली"

17/12/2013

पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,,,,

Views: 3446

Comment

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2013 at 12:56pm

राज बुन्देली जी

पहले पंच चामर, फिर दंडक वृत्त का विभेद अनंग शेखर  i  यद्यपि इस  छंद में कोई बंधन नहीं  है फिर भी 32 वर्णों को एक क्रम में निभाना भी कम चुनौती नहीं है   i  आपकी छंदाभिरुचि प्रशंसनीय है  i मै आपको  इस  छंद रचना हेतु बधाई देता हूँ  i परन्तु जैसा कि आदरणीय सौरभ जी ने भी कहा है आप रचना के पूर्व छंद का मीटर भी अवश्य बताये ताकि पाठक लाभान्वित हो सके i  बहुत सुन्दर राज जी i

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 10:10am

बहुत सुन्दर भावों से सजी रचना ......................

Comment by coontee mukerji on December 17, 2013 at 10:58pm

बहुत सुंदर रचना.सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on December 17, 2013 at 9:44pm

भारत  के वीरों की वीरता का सुंदर चित्रण, और तिरंगे के साथ सुंदर चित्र के लिए , हार्दिक बधाई राज भाई॥ 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 17, 2013 at 7:34pm

आद., गिरिराज भंडारी जी बहुत बहुत आभार आपका,,,,,आपने रचना को स्नेह दिया,,,,,,और मेरा हौसला बढ़ाया,,,, धन्यवाद,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 17, 2013 at 6:57pm

आदरणीय , बस ! पढ के मजा आगया , आपको अनेक-अनेक बधाइयाँ ।

कृपया ध्यान दे...

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