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चोटिल अनुभूतियाँ

कुंठित संवेदनाएँ

अवगुंठित भाव

बिन्दु-बिन्दु विलयित

संलीन

अवचेतन की रहस्यमयी पर्तों में

 

पर

इस सांद्रता प्रजनित गहनतम तिमिर में भी

है प्रकाश बिंदु-

अंतस के दूरस्थ छोर पर

शून्य से पूर्व

प्रज्ज्वलित है अग्नि

संतप्त स्थानक 

 

चैतन्यता प्रयासरत कि

अद्रवित रहें अभिव्यक्तियाँ

 

फिर भी

अक्षरियों की हलचल से प्रस्फुटित

क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों का चेहरा

पिघला है-

व्युत्पन्न अदृश्य धारा के पदचिन्ह

शेष हैं अभी

 

सतर में अर्थ की तलाश है

 

- बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 12:01pm

आदरणीय विजय जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by विजय मिश्र on December 3, 2013 at 11:57am
पढकर मन प्रफ्फुलित हो गया ,अतिसारगर्भित रचना ,जैसा कि आपने ही कहा -
"क्लिष्ट, जटिल शब्दाकृतियों का चेहरा
पिघला है- "
बृजेशजी , प्रसंशायोग्य संग्रहनीय रचना . आभार और साधुवाद भी .
Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 8:35am

आदरणीय चन्द्र शेखर जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 8:34am

आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!  :)))))))))

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 2, 2013 at 11:56pm

वाह्ह्ह्ह!! चेतन अवचेतन और अहं पराह्म के संबंधों का काव्यमय चित्रण!! साधुवाद! आ0

Comment by ram shiromani pathak on December 2, 2013 at 11:50pm

बहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय भाई बृजेश जी ,भाई राजेश  मृदु  जी क्या कह रहे है ??? //////बहुत बहुत बधाई। … सादर 

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 5:49pm

आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार! आपके शब्द मुझे उत्साहित करते हैं!

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 5:48pm

आदरणीया कुंती जी आपका हार्दिक आभार! इस बार एक प्रयोग करने का प्रयास किया था! आपका आशीष और स्नेह मेरे हर प्रयास को सार्थकता देता है!  

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 5:46pm

आदरणीया मीना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 2, 2013 at 5:35pm

आदरणीय बृजेश भाई जी निःशब्द अतुकांत रचनाओं में आपकी पकड़ इतनी जबरदस्त है कि बरबस मन आकर्षित होता चला जाता है. हृदयतल से हार्दिक बधाई आपको

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