For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हाकिम निवाले देंगे

गाँव-नगर में हुई मुनादी

हाकिम आज निवाले देंगे

 

सूख गयी आशा की खेती

घर-आँगन अँधियारा बोती

छप्पर से भी फूस झर रहा

द्वार खड़ी कुतिया है रोती

 

जिन आँखों की ज्योति गई है

उनको आज दियाले देंगे

 

सर्द हवाएँ देह खँगालें

तपन सूर्य की माँस जारती

गुदड़ी में लिपटी रातें भी

इस मन को बस आह बाँटती

 

आस भरे पसरे हाथों को 

मस्जिद और शिवाले देंगे

 

चूल्हे हैं अब राख झाड़ते

बासन भी सब चमक रहे हैं

हरियाई सी एक लता है

फूल कहीं पर महक रहे हैं

 

मासूमों को पता नहीं है

वादे और हवाले देंगे

 

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 1048

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 8:43pm

मिलियन डालर कोच्चन त सेई है जे वीनस भाई ने पुच्छा के ????

Comment by बृजेश नीरज on December 7, 2013 at 8:38pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on December 7, 2013 at 8:37pm

आदरणीय सौरभ जी, आपका हार्दिक आभार!

गीत और नवगीत की जद्दोजहद के बाद इस विधा पर कुछ कह सकने के संघर्ष के बीच शिल्पगत कमियां रह गयी हैं, जिन पर काम करने का प्रयास कर रहा हूँ. वीनस भाई ने जो पूछा, उस पर मेरा ध्यान वस्तुतः उनकी टिप्पणी के बाद ही गया, तो तुरंत कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं था.

इसका सुधरा प्रारूप प्रस्तुत करने का प्रयास करूँगा!

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 8:27pm

भाई बृजेशजी, इस नवगीत पर मन प्रसन्न भी हुआ है तो कुछ कहना भी चाह रहा है. इस विधा के शिल्प पर आपसे लगातार इतनी-इतनी बातें हुई हैं, होती रही हैं कि उनके बाद कुछ कहने-सुनने की आवश्यकता नहीं रह जाती. मुझे भान है कि आपको मालूम हो गया होगा कि मैं आपसे किन-किन विन्दुओं पर क्या-क्या कहूँगा. .. :-))))

शिल्प साधन अवश्य है. लेकिन यह क्यों विवशता बने कि हमारा साधन जुगाड़ू या खटारा ही हो, या, मार्क वन या टू एम्बेसडर ही हो ? जबकि सस्ते, टिकाऊ और सुगढ़ साधन आज सहज उपलब्ध हैं ! उन सभी सज्जनों, जो मेरे शिल्प सम्बन्धी निवेदनों को बलात अनसुना करते हैं, की सूची में आपका नाम शामिल हो, यह मुझे अच्छा तो कत्तई नहीं लगेगा.

वस्तुतः, मेरे निवेदनों को अनसुना करना दो कारणों से होता है --
एक, महानुभावों के व्यक्तिगत हठ-भाव के कारण, कि हुँह, बड़े आये.. :-)))  
दूसरे, प्रयासकर्ताओं की शाब्दिक-भाषायी अशक्तता या गहन प्रयास के अभाव के कारण
आप उपरोक्त दोनों विन्दुओं के पार हैं, इसके प्रति मैं आश्वस्त हूँ.

सर्वोपरि, मैं कभी अपने व्यक्तिगत मंतव्य नहीं थोपता. बल्कि काव्य-सुगढ़ता के प्रति मेरे आग्रह की आवृति तनिक तीव्र होती है, .. :-))))

भाई वीनस जी ने क्या पूछा है और आपने उस पर जो उत्तर दिया है, मुझे कुछ भी पल्ले नहीं पड़ा.
शुभेच्छाएँ

Comment by Vindu Babu on December 5, 2013 at 8:58am

प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत सुंदर रचना....सोचने के लिए बाध्य करती हुई।

सादर बधाई।

Comment by बृजेश नीरज on December 3, 2013 at 8:37am

आदरणीय वीनस भाई आपका हार्दिक आभार!

भाई जी, कोई विशेष प्रयोजन नहीं रहा! जो कहना चाह रहा था उसमें मेरे शब्दकोष से यही शब्द मिले! कोई सुधार हो तो अवश्य बताएं!

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:39am

सुन्दर भाव .. गुड इफेक्ट पड़ना शुरू हो गया  ....
बढ़िया है

तुकांतता पहले बंद के शिल्प अनुसार न हो कर दूसरा और तीसरा बंद अलग दिख रहा है .. कोई विशेष प्रयोजन ?

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 8:29am

आदरणीय शरदिंदु जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 8:29am

आदरणीया संध्या जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on December 2, 2013 at 8:28am

आदरणीय अरुण भाई आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं हम कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२जब जिये हैं दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं हम कान देते आपके निर्देश हैं…See More
6 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service