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"शादी के दस साल बाद भी ऐसी हरकत ?"
"……………"
"क्या ये सच है क़ि तेरे पेट में मालिक का बच्चा है ?"
"हाँ, ये बात बिलकुल सच है." 
"अरी छिनाल, लोगों को पता चलेगा तो वो क्या कहेंगे ?"

"और तो कुछ पता नहीं, लेकिन अब तुम्हे
कोई नामर्द नहीं कहेगा"
.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Meena Pathak on November 11, 2013 at 1:54pm

समाज के  विषैले सत्य को उजागर करती कहानी के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय योगराज जी | सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 10, 2013 at 9:53pm

वाह्ह्ह चकित हूँ इतने कम शब्दों में आपने ,बेगैरती ,बेबसी ,बेबाकी को कितनी सुघड़ता से परिभाषित किया किन्तु सोचना ये है कि इस विषैले सत्य का जन्म क्यों और कहाँ से हुआ,बच्चा न होने पर किसी को नामर्द ,किसी को बाँझ आदि शब्दों के तीरों से घायल ये समाज ही करता है तब इन विषैले सत्यों की रूपरेखा तैयार होती है | बहुत शानदार लघु कथा आपके द्वारा लिखी बहुत दिनों बाद पढने को मिली बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय योगराज जी   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 10, 2013 at 10:40am

समाज में प्राणियों को ऐसे विषैले सत्यों को जी जाने के लिए... इतना विवश बनाता  कौन है? 

मर्मस्थली को कचोटती सत्य प्रारूप को समक्ष करती सामाजिक लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय प्रधान सम्पादक महोदय.

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 8:15am

सटीक लघुतम कथा

.दंश का उपचार करता सचमुच विषैला सत्य..............

बधाई आदरणीय योगराज जी.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 10, 2013 at 12:24am

अन्तर में कई प्रश्न खड़े करके, निशब्द कर देती है आपकी  लघुकथा,  बहुत बहुत बधाई आदरणीय योगराज जी

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 9:07pm

वाह..... अत्यंत रोचक लघु कथा है आ0 योगराज जी......नि:शब्द हो गया हूँ...... परिस्थितियाँ जीवन में कैसे कैसे खेल दिखाती है..... कैसे कोई स्त्री इतना बड़ा कदम उठाने का दु:साहस कर सकती है..... जो समाज को पता चल जाए तो 'ग़लत' और न पता लगे तो 'ठीक' हो सकता है उनके निजी जीवन के लिए..... लेकिन क्या इस प्रकार का कृत्य उचित है..... आदि आदि अनेक प्रश्न इस ज़हन में उठने लगे हैं..... सुंदर एवं सार्थक लघु कथा है.....बहुत बहुत बधाई...

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 9, 2013 at 5:41pm

एक कड़वे सच को दूसरे कड़वे सच ने छुपा लिया। बधाई योगराज भाई।

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 5:37pm

आदरणीय योगराज सर शीर्षक विषैला सच हेतु ढेरों बधाई स्वीकारें जहाँ तक बात लघुकथा की है निःसंदेह एक बेहतरीन उत्तम लघुकथा है इसके आगे शब्द नहीं कुछ भी कहने के लिए समझने के लिए बहुत कुछ है. बेमिसाल लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 9, 2013 at 4:37pm

आदरणीय योगराज सर , आपने " गागर मे सागर " कहावत को सच साबित कर दिया !!!! देखत मे छोटा लगे घाव करे गम्भीर , विषैला सच के लिये आपको ढेरों बधाई !!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:21pm

आदरणीय योगराज सर, आपने महज 5-6 पंक्तियों में ही झकझोर के रख दिया, आपकी लघुकथाओं को पढ़ने के बाद ये अहसास होता है कि दरअस्ल लघुकथा क्या है, इस कामयाब रचना के लिये दिली मुबारक़बाद स्वीकार करेंl

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