For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आसमान पर, बादलों की बेहद घनघोर काली घटा छाई हुयी थी, न जाने इतना पानी बरश के कहाँ समायेगा, जमीन की पूरी गर्मी, बादलों को अपने ऊपर, मेहरबान होने का पूरा जोर लगाकर निमंत्रण दे रही थी..

....तभी एक शानदार चौपहिया वाहन आकर रुका, शायद उसमे कुछ खराबी आ गयी थी, चालक सीट पर बैठे साहब, ने अपनी आखों पर से तपती दुपहरी को, शीतल शाम करने वाला कत्थई पारदर्शी पर्दा उतारा और दरवाजा खोल के बाहर निकले, ऊपर आसमान की तरफ देखते हुए, वास्तविकता की जमींन पर कदम रखकर,सर्वप्रथम अपने छोटे से जेब से, बड़ा सा बिना तार का दूरभाष केंद्र निकाल लिया और अपनी नाजुक उँगलियों से, उस डब्बे की पारदर्शी त्वचा को, बहुत देर तक फिसलाते रहे, शायद आधुनिक कुतुबमीनार से दूरी ज्यादा थी..या लाखों लोग  उस कुतुबमीनार  पर चढ़े हुए थे..तो हो सकता है, .साहब को चढ़ने के लिए, सीढ़ी भी नसीब नहीं हो रही थी..

उधर वाहन में मेमसाहब, अपने छोटे से बच्चे को, ,मुंह से फूंक देकर बिना खपत के वातानुकूलित का मजा दे रही थी, मासूम बच्चा, मुस्कुरा रहा था....

मेमसाहब भी बार-बार,  अव्वल दर्जे के जानवर की त्वचा से निर्मित थैले में से छोटा सा आईना निकालकर, अपने हिंदुस्तान के सादगी भरे व् सुंदर मुखड़े पर, पश्चमी रंग-रोगन को उतरता देख, अवसाद से ग्रसित हो रहीं थी..  

यह सब पश्चमी देश व् भारतवर्ष की मिली जुली समस्या को देख,  वहां से गुजरते हुए एक गाँव के युवक ने बड़ी विनम्रता पूछा...साहब क्या हुआ आपकी गाड़ी को, मैं कुछ सहायता करूं क्या....

साहब ने अपनी शहरी नजरों से, उस गाँव के गवांर को ऊपर से नीचे तक देखा और अपने पूरे घमंड  व् शिक्षा के मद से भरी, जिभान से मारकर कहा... तू जानता है मैं कौन हूँ?  बहुत पढ़ा लिखा हूँ..बहुत बड़ी कंपनी में मेकेनीकल इंजीनियर हूँ,..चल जा यहाँ से अपना रास्ता नाप....

गवांर युवक नीचा सिर करके कहने लगा.., साहब आपके साथ,मेमसाहब और छोटा सा बच्चा है, यहाँ थोड़ी सी भी बारिश होने पर, यह गाँव टापू बन जाता है, आप परेशानी में आजायेंगे....

उस युवक की मदद की गुहार में लार,टपकाती जिभान ने साहब को पसीजने पर मजबूर कर दिया,

युवक ने फटाफट अपना हुनर दिखाकर करीब १०-१५ मिनिट में, गाड़ी सुधार दी,   अपने स्वेत सूती गमछे से अपना पसीना पोंछते हुए, साहब से विनती करते हुए कहा... लीजिये साहब आपकी गाड़ी,  अब आप तुरंत यहाँ से रवाना हो जाईये....

साहब गाड़ी में बैठे, गाड़ी चालू की और उस युवक को ५०० का नोट देने लगे,

युवक ने बड़ी विनम्रता से कहा...नहीं साहब.धन्यवाद. साहब मेरे पास ईश्वर की दया से सब कुछ है, मैंने भी शहर से ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की पढाई की है, पढाई के साथ-साथ मैं जेब खर्च के लिए, ऑटो गैरेज पर मैकेनिक का काम करता था,मैं घर में सबसे छोटा था, पिता व् भाई पर सबकी पढाई व्  बहनों की शादी का खर्च, ब्याज के रूप में, रोज बढता ही जा रहा था, बेरोजगारी से अच्छा, यहाँ गाँव में पूर्वजों की जमीन पर, खेती करना, बेहतर समझा...बस अब आप सभी, देशवाशियो को भूखा व् नंगा न रहना पड़े, इसी लगन को अपना फर्ज बना बैठा हूँ.... बस आप जल्दी से निकल जाइये...

साहब ने अपना  एप्पल एंड्राइड फ़ोन अपने जेब में रखा, फ़ॉसट्रक सनग्लास अपनी आँखों पर चढ़ाकर, अपनी फरारी कार के ग्लास लगा कर, ऐ. सी. ऑन किया और कार के अन्दर, अपनी पत्नी व् बच्चे के साथ, थोड़ी-थोड़ी मात्रा में, पश्चमी ऑक्सीजन को ग्रहण कर, पूर्ण कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ , बड़ी स्पीड से, मेरे गाँव की पवित्र धूल के साथ, अपनी पश्चमी सभ्यता का धुआं उड़ाते हुए  चले गये..

थोड़ी देर में वहां,बारिश की बड़ी बड़ी बुँदे लगातार बरसने लगी और पूरा ग्रामीण क्षेत्र, विशाल टापू में तब्दील होने लगा...

   

      जितेन्द्र ' गीत '

( मौलिक व् अप्रकाशित )

Views: 1001

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 12, 2013 at 6:44am

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय डा. गोपाल जी,आशीर्वाद बनाये रखियेगा

यह एक वास्तविक घटना है, जिसे अपने ही देश में जीवन-यापन कर रहे, दो अलग  सभ्यता के परिवेश का व्यंगात्मक रूप दिया गया है.

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 12, 2013 at 6:33am

आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by ram shiromani pathak on November 10, 2013 at 8:09pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय जीतेन्द्र भाई जी…बहुत बहुत बधाई आपको। ..सादर

Comment by vijay nikore on November 10, 2013 at 1:31pm

लेख संदेशपरक और रोचक है। बधाई, आदरणीय जितेन्द्र जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 10, 2013 at 9:37am

अपना सन्देश पहुँचाने का अच्छा प्रयास हुआ है. शेष श्री सुशील जी और अनंत जी ने कह ही दिया है.

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 8:47pm

आ0 जितेन्द्र भाई जी..... बहुत ही रोचक लेख है..... सार्थक एवं व्यंग्यत्मकता को अपने अंदर समेटे हुए......बहुत बहुत बधाई..... टंकण त्रुटियों की ओर आ0 अरुन भाई ने संकेत दे ही दिया है..... बाकी मुझे यह संस्मरण वास्तविक नहीं लग रहा अपितु एक रचित लेख/ व्यंग्य कथा की तरह लग रहा है..... कृपया इसे अन्यथा न लें.... हो सकता है यह केवल मेरा भ्रम हो......

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on November 9, 2013 at 6:11pm

यही अंतर है शहर और गांव के पढ़े लिखों में। तथा कथित ऊँचे घरानों में बच्चों को अच्छे संस्कार मिलते नहीं । शिक्षाप्रद संस्मरण के लिए बधाई जितेंद्र  भाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 9, 2013 at 4:52pm

रफ़्ता रफ़्ता आपकी लेखनी भी रंग में आ रही है भाई जितेन्द्र जी इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 2:18pm

आदरणीय जीन्तेंद्र भाई जी अत्यंत सुन्दर एवं गहन सोच को दर्शाती आपकी यह रचना मुझे बेहद पसंद आई ओ बी ओ का असर शुरू हो गया है भाई जी तनिक कंटक त्रुटियाँ / टाइपिंग मिस्टेक पर ध्यान और दें. इस सुन्दर रचना हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 9, 2013 at 11:43am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , सुन्दर संस्मरण के लिये बधाई , !!!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted discussions
7 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतल्ले के साथ , अच्छी ग़ज़ल कही है , हार्दिक  बधाई स्वीकार…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service