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सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है (गज़ल)

अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने

सही   राहों  पे  चलना   ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

मुहब्बत   में   तुम्हारी   हार   ही  हरबार पाए, पर

मुहब्बत  तुमसे  करना  ही  हमारी   कामयाबी  है !

 

भले   ही  मौत  आए, पर सहेंगे  अब  नही जालिम

मरे  तो  लड़  के  मरना ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

तुम्हारे प्यार में जो गम, खुशी  हमको  मिली  जानम

गज़ल  में  उसको   भरना  ही  हमारी  कामयाबी है !

 

-पीयूष भारत

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 26, 2013 at 9:25am

बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय बृजेश जी !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 26, 2013 at 9:21am

मतले को सराहने व उचित सुझाव देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय वीनस भाई ! कुछ अशआर में मुझे भी लगा कि ही/ भी की समस्या है ! पर भावों के मोह या पता नही किन कारणों से नजरंदाज कर गया ! बहरहाल, अब इसमे सुधार का पूरा प्रयास करूंगा ! जी 'सम्हलना' को अभी संभलना करता हूँ ! सादर आभार !

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 2:51am

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 
वाह वा
मतला बेपनाह खूबसूरत हुआ है ढेरो दाद

आगे के कुछ अशआर ही/भी में उलझ कर रह गए ... रदीफ के अंश ही को निभा पाना थोडा मुश्किल है अगर उला में थोडा तबदीली करें तो अशआर और बेहतर हो सकते हैं

सम्हलना - सँभलना

Comment by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:46pm

बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 25, 2013 at 3:40pm

तहे दिल से आभारी हूँ, आदरणीय विजयश्री जी !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 25, 2013 at 3:38pm

बहुत बहुत शुक्रिया, आदरणीय चन्द्र शेखर जी !

Comment by vijayashree on September 25, 2013 at 3:19pm

गिरें  तो  फिर  सम्हलना  ही  हमारी  कामयाबी है !

सफर  में  चलते  रहना  ही  हमारी  कामयाबी  है !

 

नही  ये कामयाबी  है  कि  मंजिल  पा  लिया हमने

सही   राहों  पे  चलना   ही  हमारी  कामयाबी  है !

वाह बहुत खूब  बधाई स्वीकारें  पियूष द्विवेदी जी 

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 1:57pm

सुन्दर बाबहर ग़ज़ल के लिए बधाई आपको आदरणीय 'भारत' जी

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 25, 2013 at 12:12pm

बहुत बहुत धन्यवाद, आ. अरुण भाई जी !

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on September 25, 2013 at 12:12pm

दिल से शुक्रिया, आ. सारथी भाई जी !

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