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दो क्षणिकाएं (राम शिरोमणि पाठक )

१ -उस दिन

रोज़ की तरह
उस दिन भी वो मिलीं मुझसे
हँसते हुए
लेकिन हँसी
अजीब सी लगी उनकी
जैसे कोई ईमानदार कर्मचारी
बेइमान अफ़सर को इस्तीफ़ा सौपे
और वो मुस्कुरा दे
**********************************
२-ऐसा भी

रक्त पिपासु कीड़ा
आखिरी बूँद तक चूस गया
अरे ये क्या?
शिकारी कुत्ते भी है
हड्डियाँ चबाने के लिए
*******************************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

Views: 751

Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:21am

बहुत बहुत आभार आदरणीय अभिनव अरुण जी प्रोत्साहित करने के लिए //स्नेह यूँ ही बनाये रखें //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:19am

बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी./सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:18am

बहुत बहुत आभार आदरणीया मंजरी जी./सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:17am

बहुत बहुत आभार आदरणीय  अरुन शर्मा 'अनन्त  जी./सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:17am

बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र 'गीत'  जी./सादर 

Comment by ram shiromani pathak on September 18, 2013 at 10:17am

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी./सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 18, 2013 at 12:25am

बहुत बढ़िया रचना , बधाई राम भाई

Comment by annapurna bajpai on September 17, 2013 at 11:09pm

सुंदर क्षणिकाएं गहरे भाव समेटे हुए । बहत बधाई आपको ।

Comment by mrs manjari pandey on September 17, 2013 at 9:17pm

अच्छा प्रयास शिरोमणि जी. बधाई .

Comment by Abhinav Arun on September 17, 2013 at 7:49pm

वाह श्री राम शिरोमणि जी काव्य शिरोमणि है आप साधुवाद और शुभकामनायें ..क्षणिकाएं ध्यान खींचती हैं सशक्त !!

कृपया ध्यान दे...

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