पहरों उन के साथ बिताये ,
 दिल की बात नहीं कह पाए ।
तेरी खिड़की तनिक खुली है ,
 शायद धूप निकल ही आये ।
इसी आस पर जीते हैं हम ,
 शायद उनको प्यार आ जाए ।
दिल की बात कहाँ तक माने ,
 दिल तो हर शै पर आ जाए ।
आज खुले रखो दरवाजे,
 आज कोई शायद आ जाए ।
उन के अफ़साने में सुनना ,
 शायद मेरा नाम आ जाए ।।
मुझको खंजर मारने वाले ,
 तुझको मेरी उम्र लग जाए ।
आते जाते मिल जाते हो , 
 इक अफसाना बन ना जाये ।
तूफां  हारे कभी , और कभी, 
 पुरवा मुझे      उड़ा ले जाए।
'शेखर' को सुलझाने वाले ,
 तू उसमे खुद उलझ ना जाए ।
मौलिक एवं अप्रकाशित 
 अरविन्द भटनागर ' शेखर'
।
Comment
सुन्दर रचना ... बधाई
बहुत बहुत सुन्दर रचना ... बधाई स्वीकारें
आज खुले रखो दरवाजे,
 आज कोई शायद आ जाए ।.....बेहतरीन कलाम श्री अरविन्द जी ..बहुत बधाई !1
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