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है हंसी रात बस चले आओ 

बहके जज़्बात बस चले आओ !

        

उसने वादा किया वफ़ा देंगे

दे रहा घात बस चले आओ !

ज़िन्दगी हो गई है आवारा

क्या सवालात बस चले आओ !

ठन्डे पानी मे भी बदन जलता

क्या ये बरसात बस चले आओ !

"म“ञ्जरी" अब सहा नही जाता 

अरज़े हालात बस चले आओ !

अप्रकाशित एवम मौलिक रचना  !

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Comment

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Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 8:58am

बहुत सुन्दर ग़ज़ल .. बधाई स्वीकारें


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 4, 2013 at 8:49am

आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है, सभी शेर अच्छे लगें, दाद कुबूल करें । 

Comment by Abhinav Arun on September 4, 2013 at 6:34am

ठन्डे पानी मे भी बदन जलता

क्या ये बरसात बस चले आओ !

             ..कमाल ..लाजवाब ग़ज़ल हुई है बहुत बधाई ..इस ग़ज़ल को सुखनवर के आयोजन मे सुना था आज पढ़कर आनंदित हूँ ..

Comment by Sushil Thakur on September 3, 2013 at 10:30pm

Conrts.

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 3, 2013 at 10:07pm
सहज शब्द एवं सहज भाव से गजल स्वभाविक ही सहज है । बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 3, 2013 at 9:57pm

आदरणीया मंजरी जी , अच्छी गज़ल हुई है !! बधाई !!

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