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तीन मुक्तक - लक्ष्मण लडीवाला

मुक्तक 
एकाकीपन सांझ का, चंचल मन भटकाय
इस पड़ाव पर उम्र के,बनता कौन सहाय 
सुन्दर हर पल वह घडी,अनुपम सा उपहार 
साँस साँस की हर लड़ी,मुग्ध मुझे करजाय |

(2)
 
बिगड़ न जावे और ये, जीवन के हालात 
वर्षा जल भूजल करे, तभी बनेगी बात |
हरियाली वसुधा रहे, नदियों में जलधार,
पनघट प्यासे हो रहे,सुन मेरी यह बात |
 
(३)

नारी तू अबला नहीं, पूरे कर अरमान 
दोषी से कर सामना, अपनी ताकत जान 
रानी लक्ष्मी रूप को, एक बार कर याद 
माँ दुर्गा सी शक्ति को, अपने में पहचान | 
(मौलिक व् अप्रकाशित)

-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला

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Comment

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Comment by Devendra Pandey on July 1, 2013 at 3:44pm

Bahut Hi Sundarr Abhivyakti hai, matraon ka safal Bhaar Diya Hai Aapne,Bhaav Spast Hote hain 

Comment by वेदिका on July 1, 2013 at 2:19pm

वाह!! बहुत खूब मुक्तक कहे आपने 

नारी तू अबला नहीं, पूरे कर अरमान 
दोषी से कर सामना, अपनी ताकत जान …. बहुत सकारात्मकता दे गयी ये पंक्तियाँ!!  

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 1, 2013 at 12:53pm

लाजवाब मुक्तक आदरणीय हार्दिक बधाई स्वीकारें.

एकाकीपन सांझ का, चंचल मन भटकाय
इस पड़ाव पर उम्र के,बनता कौन सहाय ( वाह क्या बात कही है आपने)
Comment by विजय मिश्र on July 1, 2013 at 12:27pm
"एकाकीपन सांझ का, चंचल मन भटकाय
इस पड़ाव पर उम्र के,बनता कौन सहाय " -- बहुत भाये यह भाव , दिनभर की थकन के बाद आयी शाम की अपनी ही कसीस होती है और खुदा न खास्ता इसे अकेले भुगतने की बात किसी सजा से कम नहीं लगती .बधाई स्वीकारें मान्यवर ,
Comment by बसंत नेमा on July 1, 2013 at 10:27am

नारी तू अबला नहीं, पूरे कर अरमान 
दोषी से कर सामना, अपनी ताकत जान 
रानी लक्ष्मी रूप को, एक बार कर याद 
माँ दुर्गा सी शक्ति को, अपने में पहचान | 

बहुत  सुन्दर रचना .....बधाई 

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