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ग़ज़ल - मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए !

ग़ज़ल -

ज़िन्दगी की दौड़ में आगे निकलने के लिए ,
आदमी मजबूर है खुद को बदलने के लिए ।

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

हाथ में आका के देकर नोट की सौ गड्डियां ,
आ गये संसद में कुछ बन्दर उछलने के लिए ।

गुम गयीं बापू तेरी मूल्यों की सारी टोपियाँ,
और लाठी रह गयी सच को कुचलने के लिए ।

नित गिरावट के बनाए जा रहे हैं कीर्तिमान 
सभ्यता की छातियों पर मूंग दलने के लिए ।

घर बुजुर्गों के बिना कितने वियाबां हो गए ,
अब नसीहत किस से पाएं हम संभलने के लिए ।

रात भर में फ़िक्र को उनकी न जाने क्या हुआ ,
सुब्ह हमसे आ मिले पाला बदलने के लिए ।

मुंगे मोती से भरे सागर में ऐसा क्या हुआ ?
मछलियाँ तय्यार हैं जारों में पलने के लिए ।

आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।

                                - अभिनव अरुण 
                                  [14052013]

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Comment by राज लाली बटाला on August 30, 2013 at 11:01am
wah
Comment by Praveen Kumar Rajbhar on July 3, 2013 at 2:23pm

बहुत उम्दा .. हार्दिक शुभकामनायें 

.

Comment by Abhinav Arun on June 28, 2013 at 2:07pm

आदरणीया डॉ नूतन साहिबा और श्री केतन जी हार्दिक आभार आपका !

Comment by Ketan Parmar on June 27, 2013 at 9:22pm

UMDA KALAM ABHINAV JI BHOT HI SUNDAR KATAKSH KIYA HAI AAPNE

सिर्फ कहने के लिए अँगरेज़ भारत से गए ,
अब भी है अंग्रेजियत हमको मसलने के लिए ।

MUKAMAL SHE'R HAI

Comment by डॉ नूतन डिमरी गैरोला on June 25, 2013 at 8:15pm

बहुत सुन्दर गज़ल है अभिनव जी... बधाई 

आने वाली पीढ़ियों के नाम पौधे रोप दें ,
शुद्ध शीतल वायु तो हो साँस चलने के लिए ।..........एक सुबर सन्देश के साथ 

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:14pm

बहुत शुक्रिया श्री अमन जी !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:13pm

आपकी तारीफ से अभिभूत हूँ आदरणीया विजयश्री जी बहुत आभार !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:13pm

आदरणीया मंजरी जी बहुत धन्यवाद हौसला बढ़ाने के लिए !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:12pm

क्या कहने श्री अवनीश जी बहुत शुक्रिया !

Comment by Abhinav Arun on June 19, 2013 at 4:12pm

बहुत आभार आदरणीय श्री विजय साहिब ग़ज़ल पसंद आई लिखना सार्थक हुआ स्नेह बना रहे यही कामना है ..

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