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जिसकी  रही  कभी नहीं आदत उड़ान की

अल्फ़ाज़ खूबियाँ कहें खुद उस ज़ुबान की

*

भोगा हुआ यथार्थ जो सुनाइये,  सुनें

सपनों भरी ज़ुबानियाँ  दिल की न जान की..

*

जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें

वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..

*

जिनके कहे हज़ारहा बाहर निकल पड़े

ऐसी जवान ताव से चाहत कमान की..

*

जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का

ये सोच खुश हुआ बढ़ी  कीमत दुकान की.

*

हर नाश से उबारता, भयमुक्त जो करे

हर रामभक्त बोलता, "जै हनुमान की" !

*

तन्हा हुए दलान में चुपचाप सो गया  

ये शायरी ज़बां है किसी बेज़बान की..

 

-- सौरभ

 

 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 3, 2011 at 3:44pm

प्रस्तुत ग़ज़ल आपको पसंद आयी, भाई कैलाशजी, धन्यवाद.

 

Comment by Kailash C Sharma on September 3, 2011 at 3:11pm

भोगा हुआ यथार्थ जो सुनाइये,  सुनें

सपनों भरी ज़ुबानियाँ  दिल की न जान की..

 

बहुत खूब ! लाज़वाब गज़ल...बधाई !

 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 2, 2011 at 3:10am

इस प्रविष्टि के सम्बन्ध में यह स्पष्ट करना अनुचित न होगा कि ओबीओ के मुशायरे (आयोजन -१४) में इस ग़ज़ल को सम्मिलित होने का सौभाग्य मिला है. मैंने यहाँ कुछ संशोधनों के पश्चात इसे पुनः प्रस्तुत किया है.

 

वन्दनाजी, मोनिकाजी तथा सतीशजी को इस ग़ज़ल को पसंद करने के लिये मेरा हार्दिक धन्यवाद.

Comment by satish mapatpuri on September 1, 2011 at 10:42pm

जिसके खयाल हरघड़ी परचम बने उड़ें

वो खा रहा समाज में इज़्ज़त-ईमान की ..

बहुत गंभीर एवं गहरी बात ........................... शानदार ....................... अभिनव अभिव्यक्ति , साधुवाद सौरभ जी.

Comment by monika on September 1, 2011 at 5:21pm

जबसे सुना कि शोर है अब इन्क़िलाब का

ये सोच खुश हुआ बढ़ी  कीमत दुकान की.

बहुत खूब सौरभ जी बहुत बढ़िया

कृपया ध्यान दे...

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