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गुनाह कर के भी उतरा नहीं ख़ुमार मेरा 
 नशा उतार ख़ुदाया नशा उतार मेरा.
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 बना हुआ हूँ मैं जैसा मैं वैसा हूँ ही नहीं   
 मुझे मुझी सा बना दे गुरूर मार मेरा.
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 ये हिचकियाँ जो मुझे बार बार लगती हैं 
 पुकारता है कोई नाम बार बार मेरा.  
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 मेरी हयात का रस्ता कटा है उजलत में 
 मुझे भरम था फ़लक को है इंतज़ार मेरा.
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 पड़े जो बेंत मुझे उस की, दौड़ पड़ता हूँ 
 मैं जैसे हूँ कोई घोड़ा ये मन सवार मेरा.
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 मैं उस से बच नहीं पाता हूँ गो ख़बर है मुझे   
 करे है मेरी अना रात दिन शिकार मेरा.
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 हर एक साँस बदलती है ज़र को पीतल में 
 न जाने हश्र में क्या दाम दे सुनार मेरा. 
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 किसी नज़र से उतरते ही मर गया था मैं 
 जिसे समझते हो तुम जिस्म है मज़ार मेरा.
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 निलेश "नूर"
 मौलिक/ अप्रकाशित 
Comment
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
आदरणीय नीलेश भाई , हमेशा की तरह आपकी ग़ज़ल बेहतरीन लगी , हर एक शेर  उम्दा हुए हैं 
पड़े जो बेंत मुझे उस की, दौड़ पड़ता हूँ
मैं जैसे हूँ कोई घोड़ा ये मन सवार मेरा.    -- ये शेर मेरे लिए बहुत ख़ास  है  बधाई आपको 
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