For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नेह के आंसू को सरजू कहता हूँ

अपनेपन से तुझको मैं तू कहता हूं।

                    **

रात छत पे जब निकल आता है तू

इन सितारों को मैं जुगनू कहता हूँ।                      **   

       

 ये जो तन से मेरे आती है महक़..

मैं इसे भी तेरी खुशबू कहता हूँ।

                      **

ये अदब,शोख़ी, नज़ाकत, लहज़े में..

मैं इसी लहज़े को उर्दू कहता हूँ।

                      **

सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप

मैं सदा को तेरी जादू कहता हूँ।

                     **

जान कहता था जो तू ,सो अब भी मैं

जान खुदको तुझको जानू कहता हूँ।

******************************

         मौलिक व अप्रकाशित

******************************

Views: 1490

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 20, 2021 at 5:19pm

आ.अमीरुद्दीन अमीर सर ग़ज़ल पर आपके सुखद स्नेह और इस्लाह का सदैव आकांछी रहता हूँ।

//सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप.// इस मिसरे में एक मात्रा की छूट का फ़ायदा उठाया है। 

// 'पी' को 1 के वज़्न पर लेना उचित है?//  इस पर मैं बहुत यकीन से तो नहीं कह सकता कि ये सही है या नहीं, लेकिन जितना मेरी जानकारी में है उस हिसाब से तो मात्रा गिरा सकते हैं। obo में किसी रचना को रखने का ये फ़ायदा रहता है कि उसकी कमियां दोष वग़ैरह गुनीजन बता देते हैं इस प्रकार सीखने का क्रम चलता रहता है। उस उद्देश्य से ही रचना प्रस्तुत है।इस पर गुणीजनों को सलाह का इंतजार है।

आपके स्नेह और हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रगुजार हूँ आदरणीय।इसी प्रकार स्नेह बनाये रक्खें। सादर।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 20, 2021 at 5:05pm

शुक्रिया भाई आजी तमाम जी।

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 20, 2021 at 5:04pm

agoDelete Comment

आदरणीया रचना जी ग़ज़ल पर आपकी मुक्तकंठ प्रतिक्रिया पाकर हृदय रचनाकर्म के प्रति संतुष्ट हुआ।हार्दिक आभार। मक्ते पर आपने बेहतरीन सलाह दी है, लयात्मकता को यह बढ़ा रहा है।बस इस बात में जरा सोच में हूँ कि...

जान खुदको तेरा जानू कहता हूँ।.........यह मिसरा बहुत सपाट हो जा रहा है।

जान खुदको, तुझको जानू कहता हूँ।.........जबकि.इस मिसरे में खुदको के बाद अल्पविराम ले, तो अधिक स्पष्टता होगी।

खैर इस परिवर्तन को ग़ज़ल में आभार सहित, " समय/लयात्मकता/शे'र के वज़न " के प्रकाश में भविष्य के हाथ छोड़ता हूँ। बहुत शुक्रिया आभार।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on February 20, 2021 at 9:45am

जनाब कृष मिश्रा 'जान' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।

2122- 2122 -212

सब थकन मेरी पी जाती है ये धूप.       इस मिसरे की बह्र चेक कर लें, क्या यहाँ 'पी' को 1 के वज़्न पर लेना उचित है? 

जान कहता था जो तू ,सो अब भी मैं

जान खुदको तुझको जानू कहता हूँ       इस शे'र के दोनों मिसरों में' जान' और खुदको के साथ तुझको खटकता है। सादर। 

Comment by Aazi Tamaam on February 20, 2021 at 9:41am

आदरणीय जनाब जान जी

खूबसूरत ग़ज़ल है

क्या लगाया है मक्ता वाह वाह............! 

Comment by Rachna Bhatia on February 19, 2021 at 9:24pm

आदरणीय कृष मिश्रा जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई। वाह वाह वाह। आदरणीय मक़्ते में 'तुझको' के बदले 'तेरी' अधिक अच्छा लगा मुझे।

सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service